tag:blogger.com,1999:blog-27529699.post4928179130805170397..comments2023-10-20T22:28:17.808+07:00Comments on MEDIA YUG: पत्रकारों, आओ अब गांवों की ओर लौटेंMediaYughttp://www.blogger.com/profile/16154274004355926009noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-76565128223077925732007-04-19T12:22:00.000+07:002007-04-19T12:22:00.000+07:00पत्रकारों, जहां जाना हो जाओ. पर visual rag-picker ...पत्रकारों, जहां जाना हो जाओ. पर visual rag-picker मत बनो. समग्र दृष्टि रखो. अभी तो जो देखना चाहते हो वही देखते हो.<BR/>खैर यही बात पत्रकारों पर ही नहीं, सब पर लागू होती है.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-17016207715283799422007-04-14T10:45:00.000+07:002007-04-14T10:45:00.000+07:00कम्युनिटी रेडियो वाकई ग्रामीण पत्रकारिता के लिए मु...कम्युनिटी रेडियो वाकई ग्रामीण पत्रकारिता के लिए मुख्य ध्वजवाहक बन सकता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कर्णाटक के एक छोटे से गांव बूड़ीकोट में भारत के पहले स्वतंत्र कम्युनिटी रेडियो के द्वारा आ रहे बदलाव की ख़बर को सितम्बर, 2003 में <A HREF="http://72.14.235.104/search?q=cache:icMj82saPjkJ:www.communityradionetwork.org/toplinks/archives/new%2520art4+community+radio+in+india&hl=hi&ct=clnk&cd=2&gl=in" REL="nofollow">वाशिंगटन पोस्ट में कवर किया गया</A> था, लेकिन भारतीय मीडिया में इसकी खास चर्चा नहीं हुई। कम्युनिटी रेडियो के मामले में हमारा देश अपने पड़ोसी नेपाल और श्रीलंका से भी काफी पीछे है। यहां एफ.एम. रेडियो के लाइसेंस निजी क्षेत्र के बड़े व्यावसायिक मीडिया घरानों को दिए गए हैं। कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस कुछेक बड़े शैक्षिक संस्थानों को दिए गए हैं। लेकिन बिहार के एक छोटे से कस्बे वैशाली से एक ग्रामीण युवा द्वारा चलाए जा रहे एक <A HREF="http://ia.rediff.com/money/2006/mar/27bihar.htm" REL="nofollow">लोकप्रिय स्थानीय निजी रेडियो स्टेशन को सरकार ने बंद</A> करा दिया। <BR/><BR/>जहां तक डॉक्टरों, शिक्षकों आदि के गांवों में जाकर काम करने के प्रति अरुचि का प्रश्न है, यह स्थिति भी तभी बदल सकती है, जब गांवों में पत्रकार सक्रिय होंगे और वहां के ऐसे हालात की ख़बरें मीडिया में आएंगी। अब एमबीबीएस की पढ़ाई करने वालों के लिए कुछ समय गांवों में काम करना अनिवार्य कर दिया गया है। लेकिन पत्रकार ही इसे सुनिश्चित करा सकते हैं। जिन डॉक्टरों की पोस्टिंग गांवों में होती है, उनमें से अधिकतर केवल वेतन लेने कुछ दिन के लिए गांवों में जाते हैं और बाकी समय नजदीकी शहरों में निजी क्लिनिक चलाते हैं।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-88135181292817644112007-04-14T00:28:00.000+07:002007-04-14T00:28:00.000+07:00एकदम सही कहा आपने। ग्रामीण पत्रकारिता तो सिर्फ़ नाम...एकदम सही कहा आपने। ग्रामीण पत्रकारिता तो सिर्फ़ नाममात्र की ही रह गयी है। टीवी पत्रकारिता का मोह तो सिर्फ़ अपराध और अराजकता पर सिमट कर रह गयी है, बची खुची कसर सो काल्ड 'स्टिंग आपरेशन' ने पूरी कर दी है।<BR/><BR/>पत्रकारों को एक नयी शुरुवात करनी ही होगी, नया आधार तलाशना ही होगा। नही तो पत्रकारिता अपनी उपयोगिता,प्रासंगिकता और लोकप्रयिता खो देगी।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-34287284359497689212007-04-14T00:13:00.000+07:002007-04-14T00:13:00.000+07:00सृजनशिल्पी जी आपके लेख पर एक प्रतिक्रिया यहाँ लिख ...सृजनशिल्पी जी आपके लेख पर एक प्रतिक्रिया यहाँ लिख है <BR/><BR/><A HREF="http://ms.pnarula.com/200704/गांव-और-कैरियर/" REL="nofollow">http://ms.pnarula.com/200704/गांव-और-कैरियर/</A>मिर्ची सेठhttps://www.blogger.com/profile/11680187727394305360noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-43362583819913127322007-04-14T00:04:00.000+07:002007-04-14T00:04:00.000+07:00सृजन जी, वैसे मैं काम तो एक मुंबई के एक बड़े...सृजन जी,<BR/> वैसे मैं काम तो एक मुंबई के एक बड़े टेलीविजन चैनल में करता हूं लेकिन कई बार लगता है कि विकास की इस दौड़ में गांव बहुत पीछे छूट गए हैं और कुछ करना चाहिए। लेकिन गांवों में वाकई रेडियो ही एक और क्रांति ला सकता है। लेकिन महात्मा गांधी के सपने और ये बड़ी-बड़ी बाते मेरी समझ में नहीं आती क्योंकि मेरा मानना है किसी भी संस्था को चलाने के लिए पैसा बहुत जरूरी है। ऐसे में कम्यूनिटी रेडियो वाकई में भारत की तस्वीर बदल सकता है। कमल जी, का कहना भी सही है कि गांवों में ठीक-ठाक पैसा मिले तो बड़े शहरों में शायद ही कोई आए। चले लेकिन इस बेहतरीन लेख के लिए साधुवाद।<BR/><BR/>आपका- <BR/>आलोक वाणीAlok Vanihttps://www.blogger.com/profile/12954313001191443428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-66871771148849530262007-04-13T21:33:00.000+07:002007-04-13T21:33:00.000+07:00सृजनशिल्पी जीबहुत अच्छा, सुंदर लेख. पत्रकारों को इ...सृजनशिल्पी जी<BR/>बहुत अच्छा, सुंदर लेख. पत्रकारों को इस पर अपनी प्रतिक्रिया लिखनी चाहिए.लेकिन यह मामला सिर्फ पत्रकारिता का नहीं, डॉक्टर,टीचर इंजीनियर कहाँ जाते हैं गाँवों की ओर...बहरहाल, मुद्दा चिंतनीय है.<BR/>अनामदासAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-66709322068026476972007-04-13T20:17:00.000+07:002007-04-13T20:17:00.000+07:00ग्रामीण पत्रकारिता को भारत में अब तक नजरअंदाज किया...ग्रामीण पत्रकारिता को भारत में अब तक नजरअंदाज किया गया है लेकिन अब तो बड़ी बड़ी कंपनियों को भी समझ में आ गया है कि ग्रामीण बाजार की अनदेखी उन्हें भारी पड़ सकती है। हालांकि आपने यह सही कहा कि मीडिया वाले ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारों की स्थाई नियुक्ति नहीं करते, जो इसे बढ़ावा देने में एक बड़ी परेशानी है। ग्रामीण क्षेत्रों में पारिश्रमिक भी कम दिया जाता है। यदि मीडिया समूह गांवों में स्थाई नियुक्ति, बेहतर वेतन और लेपटॉप जैसी दूसरी सुविधाएं देने लगे तो शहरों में कई पत्रकार आना ही पसंद नहीं करेंगे। मैं आपको मेरे बारे में ही बताता हूं कि यदि मुझे गांवों में ठीक पैसा मिलता तो मुंबई में पत्रकारिता करने नहीं आता। लेकिन क्या किया जा सकता। प्रिंट वाले अभी भी सेंटीमीटर के हिसाब से भुगतान करते हैं और फोन के खर्चे तक नहीं देते। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम वाले प्रति स्टोरी पैसा देते हैं और वहां रोज रोज बड़ी वैसी स्टोरी होती नहीं जैसी मल्लिका शेरावत के मुंबई में नाचने पर बनती है। ठुमके गांवों में लगते नहीं, वहां कोई सेलिब्रिटी आकर खाना खाते नहीं और गांव वाले खा रहे हैं या भूखे हैं, इसकी स्टोरी कोई कवर करता नहीं। वेब पत्रकारिता का तो गांवों में कोई भविष्य नहीं है।चलते चलतेhttps://www.blogger.com/profile/00891524525052861677noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-27529699.post-83045038867962570682007-04-13T18:48:00.000+07:002007-04-13T18:48:00.000+07:00सच कहा, पत्रकारिता को वापस अपने आधारों में लोटना ह...सच कहा, पत्रकारिता को वापस अपने आधारों में लोटना होगा। उसे जड़ तलाशने होंगे। और एक नई शुरूआत करनी होगी। उम्मीद है। पत्रकार सुन रहा होगा।Soochakhttps://www.blogger.com/profile/09031218416834074761noreply@blogger.com