Sunday, March 02, 2008

मासूम हाथों का भविष्य क्या होगा?

कानून बन चुका है। और कागजी तौर पर लागू भी। लेकिन सड़क पर चाय पीने वाले लोग हर रोज छोटू के हाथ से ही दिन की शुरूआत करते है। ऐसा सालों से हो रहा है। सरकारों, पत्रकारों, पढ़े लिखे लोगों की नजरों के सामने। इसे रोकना का माद्दा किसी एक संस्था में नहीं दिखता। टीवी पर छोटे छोटे हाथ बर्तनों की खुरचन में अपनी भविष्य मलते देखे जाते है। अखबारों में वे एक तस्वीर और हजार शब्द की जगह भरते है। लेकिन चाय, चाट और चप्पल की दुकान से लेकर घरों में हाथ बंटाने के लिए चौदह साल के कम के नरम हाथों वाले बच्चें ही नजर आते है। इसे बदलना आसान नहीं है। ये दमन, आदत और सस्ते सौदे की कसौटी पर किया जाने वाला अपराध है। जिसे अपराध तो कतई नहीं समझा जाता। किसी को काम देना उसपर, उससे चलने वाले बड़े गरीब परिवार पर अहसान माना जाता है।

हाल ही में एक संगठन ने जंतर मंतर, दिल्ली में इन मासूम बेआवाज बच्चों को बटोरा। टीवी पर ये आक्रोश नहीं देखा गया, कवरेज के लिहाज से ये न तो खबर मानी जाती है और न हीं विजुअल के लिहाज से अपीलिंग। लेकिन ये खबर है। क्योंकि इससे जुड़ा है आपके देश का भविष्य। आपके आसपास काम करने वाले मासूम बच्चों में अगर आपको बचपन नहीं दिखता, तो मान लीजिए कि आप संवेदनाहीन हो गए है।

मीडियायुग को ये मेल भेजा है एक एनजीओ ने। हम उनका आभार जताते है।


Dear Sir / Madam,
Today, We have demonstrated at the parliament street for our( child labours rightful demands ) we collect at the Jantar Mantar there we have a small meeting which was addressed by child labour(kapil,raju ,anuj,mujeeb,bablu,suraj etc.) they share their problem they faced daily life. Their life become more miserable because some N.G.O. uses them as a product or number and thrown out after the use.
These children submitted their memorandum to ministry of child & women welfare and National Commission for Protection of Child Rights.

BAAL MAZDOOR UNION
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