क्या 2 अक्टूबर से टीवी पर चलने वाली खबरों की पहरेदारी शुरू हो जाएगी। अगर नेशनल ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन के उठाएं कदम की माने तो ऐसा हो जाएगा। और नाफरमानी या शिकायती की जीत होने पर संवाददाता या चैनल को एक बड़ी राशि का जुर्माना देना होगा। तो क्या हम मान लें कि कंज्यूमर फोरम जैसे अधिकारों से लैस होगी ये अथारिटी। न्यूज ब्राडकास्टिंग स्टैण्डर्डस( डिस्प्यूट रिड्रेसल) एथारिटी अपने फैसले किस आधार पर लेगी या देखने लायक होगा।
ये जाहिर तौर पर पहले शिकायती मामले और उसपर आए फैसले से तय होगा। लेकिन ऐसे वक्त में जब समाचार के चैनल अपने आप को ही, कोर्ट कचहरी और न्याय की सारी प्रक्रिया मान लें, तो उन्हे जो दोषी ठहराए, वो कंटेम्पट आप चैनल का हकदार होगा। और अपने आप को स्वयं नियंत्रित करने का दावा करने वाले चैनल क्या खुद को नियंत्रि करने के लिए तैयार है। गौर करिए। बीते दिनों में भी चैनलों पर जुर्म और सेक्स से जुड़ी खबरों का चलना कम नहीं हुआ है। चाहे वो किसी धर्म गुरू के कर्मकाण्डों का चाशनी लगाकर पेश किया गई खबर हो, या किसी जुर्म के कार्यक्रम में हिंदी फिल्म बाजार में अभिनेत्री बनने की खबर का सेक्स भरा प्रस्तुतिकरण।
जाहिर है हर शुरूआत का स्वागत करना चाहिए। हम करते है। लेकिन हमारे सामने एक ऐसे दौर को रखा जा चुका है, जो हमें विश्वास करने से पहले सोचने को मजबूर करता है। टीआरपी, एडवरटोरियल, स्क्रीन पर बेइंतिहा प्रचार के बाद हमें ये समझ लेना चाहिए कि टीवी की इंडस्ट्री अपने खर्चो और रिसोर्सेज के लिए किस कदर बाजार पर निर्भर है। इसका साफ असर हम खबरों को न्यूज रूम से निपटा दिए जाने, इंटरनेट के विजुअल पर खबरों के बनने, ग्राफिक्स के ज्यादा से ज्यादा सपोर्ट से खड़ी की गई खबरों के तौर पर देखते है। तभी तो, चार्ल्स शोभराज, दाउद, ओसामा जैसी खबरों पर अभी भी टीवी तूफान खड़ा कर देता है। दरअसल इन खबरों में फाइल फुटेज से काम चल जाता है, और लिखने को कुछ भी लिखकर इन्हे चलाया जा सकता है। कोई इस पर आपत्ति नहीं उठा सकता। कम से कम दाउद या चार्ल्स तो नहीं उठा सकते है। लेकिन इससे ही डर और खौफनाक हादसों से डराने की एक प्रक्रिया जारी है। ये केवल एक उदाहरण है। हर फील्ड – खेल, फिल्म, समाज और राजनीति तक में ये प्रयोग जारी है।
और यकीन मानिए इन प्रयोगो से समाज टूट रहा है। घरों में एक भय है। टीवी की जुर्म, धर्म और भरोसे की दिखाई खबरों से हर कोई हर पल दहशत है। और अगर अथारिटी अपने फैसलों से इस दहशत को दूर करने में सफल रहा, तो यकीन मानिए, हम टीवी समाचार के एक नए दौर का स्वागत कर रहे होंगे।
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Sunday, August 24, 2008
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2 comments:
Journalism today is not about breaking news,
It is about faking news now!
find Indian media exposed at
http://www.fakingnews.com
अगर विक्टिम्स की ख़बर को स्टाप कर क्यूं ना धरम के नाम पर अन्धविश्वास को दिखाया जाए. क्यों न धर्मं के नाम पर लोगो को मारने वालो के विज्ञापन दिखाए जाए ! क्यूं न पैसा कमाया जाए धर्म के नाम पर अगरबती धुप बंधुआ मजदूरों से बनाई हुई चीजों के बेचने वालो को धरम गुरु बना कर धार्मिक लोगो को लूटा जाए ! क्या आप यह चाहते हैं ? कुछ विषय ऐसे है जिनको मीडिया ने ही घर घर में पंहुचा कर क्रिमिनल्स को हमारा धरम गुरु बना दिया ! अब जब लुटे हुए लोग अपने आप को कोस रहे है तो मीडिया को चाहिए की उनकी मदद करे ! मै तो यही कहूँगा ! बाकी मीडिया तो उन क्रिमिनल्स को स्लोट बेच रहा है
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