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Friday, April 20, 2007

अमिताभ ने तोड़ा मीडिया से संबंध


किसी की जिंदगी में शादी का महत्व जिंदगी भर के लिए होता है। टीवी के लिए ये बिन बुलाए मेहमान जैसा हो चला है। बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना। पर देश के महानायक के सपूत की शादी हो तो बात कुछ बदल जाती है। अमर सिंह कल रात एक अंग्रेजी चैनल को बता रहे थे कि ये नितांत निजी आयोजन है। है भी। दरवाजे बंद है। और कैमरे रोल पर। कभी भी कोई गाड़ी निकले, हू हा चालू। बड़ा गजब है किसी की शादी में बिन कार्ड के मेहमान होना। लेकिन सवाल ये होता है कि क्यों मीडिया मेहमान नहीं है। क्या ये घर बुलाकर अपमान करने जैसा है। क्या महानायक को डर है कि मीडिया के दखल से उनका कुछ चला जाएगा। जिस शादी में घर के नौकर तक कार्ड पाएं हो, वहां मीडिया को दरकिनार करना क्या बताता है। जरूरत। स्वार्थ। और समझदारी। जिस महानायक को टीवी ने जिंदा रहने को सांसे दी। वो आज मीडिया को दूर रखना चाहता है। आप सवाल उठा सकते है कि शादी में किसे बुलाना है किसे नहीं ये उनका फैसला है, लेकिन जिस देश ने उन्हे महानायक बनाया है, जिसने उनके लिए दुआएं की है, अगर वो उनके सुपुत्र की शादी के कुछ नजारे देखना चाहता है तो रोक क्यूं। ये भी समझता हूं कि मीडिया के तमाशे से उनका निजीपन खत्म हो चला था। कब, किससे, कहां के सवाल सैकड़ों बार उठा कर मीडिया ने शादी को ओपेन भेड़चाल में बदल डाला था। लेकिन ये मौका क्या मीडिया ने खुद दखल देकर लिया था या बार बार बच्चन परिवार की चाहत रही कि वे जो भी करें उसे देश जाने। बार बार मीडिया को कैसे पता रहता था कि वे और उनका परिवार कहां जा रहा है, क्या कर रहा है। कब कर रहा है। क्या मीडिया में उनके खास नहीं जानते कि वे क्या सोचते है। शादी की तैयारियों को लेकर जो झामताम फैलाया गया, उसमें मीडिया की बेवकूफियां गैर जरूरी थी, पर उनके परिवार ने जिस तरह से चीजों को करवटों में मीडिया के सामन रखा, वो काबिलेगौर है। जैसे गुरू में साथ काम करने के फैसले से लेकर टोरंटो में प्रिमीयर से लेकर और जोड़े के दक्छिण के मंदिरों के फेरों से लेकर बनारस, विंध्याचल और घोषणा तक। हर पल मीडिया को साथ रखा गया। मीडिया घुसा भी रहा। गैरजरूरी हस्तक्छेप। लेकिन जब इस आयोजन के अंत का दिन आया तो मीडिया लकड़ी के दरवाजे के पार खड़ा था। जलसा में शोर था, लेकिन बाहर शांति। मानो अमिताभ ने एक संबंध तोड़ दिया। एक करार से मुकर गए। और इससे दिल टूटा, हर भावुक फैन का। अमिताभ ने सिक्योरिटी पर लाखों खर्चे। मीडिया ने इंतजामों पर लाखों। मीडिया की आतुरता केवल एक चर्चित शादी को देश के सामने रखने की थी। पर अफसोस अमिताभ ऐसा नहीं चाहते थे। बीते सालों में मीडिया ने मुख्य धारा को छोड़कर जिस टैबलाएडेशन की ओर कदम बढ़ाए, उसका नतीजा है कि आज दर्शक देखना चाहता है तमाशा और निजीपन। सो उसे खलता है। ये अतिश्योक्ति नहीं है। गोरखपुर के एक रेलवे कर्मचारी की बीवी ने कभी अमिताभ को नहीं देखा, लेकिन वे कहती है कि सोचा था कि टीवी पर उनके बच्चे और घर को देख सकूंगी। पर टीवी वाले भी बाहर खड़े है। ये वकालत नहीं है। ये चाहत नहीं है। ये गुहार नही हैं। पर ये वो सचाई है जिसे टीवी वाले ने इस बार समझा है। और उम्मीद है कि वो आगे किसी को भगवान बनाकर प्रसाद भी न पाने वाला बनना चाहेगा।

सूचक
soochak@gmail.com

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