Showing posts with label Diseases. Show all posts
Showing posts with label Diseases. Show all posts

Friday, April 27, 2007

आपकी बीमारी, मेरी खबर है

देश की तबीतय कैसी है। इस सवाल के सीधे अर्थ राजनीतिक लिए जाते है। और अगर इसे हर भारतीय की तबीयत से जोड़ा जाए तो मायने अनोखे ही होते है। लेकिन व्यक्तिगत बोलचाल में तबीयत तो ठीक है न, का पूछा जाना जो बताता है, वो ही हमारा मतलब है। देश में हर मर्ज का इलाज है, लेकिन बीमार बढ़ते जा रहे है। किसी के पचास लाख है तो किसी के आठ लाख। एचआईवी से लेकर कैंसर ने मानो अब भारत का रूख किया है। लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल जिस गति से टीवी, रेडियो जैसे सरल जनसंचार माध्यमों ने प्रसार पाया है। उसी गति से इनसे सूचना को फैलाना भी सरल हो चला है। लेकिन यहीं सवाल खड़ा हो रहा है। इस सूचना जागरूकता के अभियान से किसका हित है। बीमार का या सरकार का। एनजीओ का या विदेशी दवाई कंपनियो का। सवाल सीधा है, लेकिन जवाब टेढ़ा। पिछले चार पांच सालों में यकायक आपको लगा कि एचआईवी और एड्स आपके नजदीक खड़ी है। और अनजाने या गलती में एक कदम के बाद आप भी किसी प्रचार का हिस्सा बन जाएंगे। यकायक लगी कि कैंसर की भारतीय प्रजातियां बढ़ गई है। यकायक बर्ड फ्लू ने लाखों मुर्गियों को आहार बना लिया। और एक ओर मलेरिया, हेपेटाइटिस और डायरिया शांत शिकार बनाते रहे। ये मौजूद थे, और आंकड़ो में ज्यादा जिंदगिया लील रहे थे, लेकिन जागरूकता अभियानों में केवल वे बीमारियां शामिल है, जो विदेशी ज्यादा है।

टीवी को क्या दिखाना है सवाल इसका है। अभी जो स्थिति है उसमें उसके पास किसी भी बीमारी या नशे को प्रति जागरूकता फैलाने वाले विग्यापन तो खूब है, लेकिन खुद की पैदा की गई स्टोरीज का अभाव है। जिसकी वजह से एक गैप आ गया है। दर्शक को समझा पाना कि आप भी कई तरह की बीमारियों के पास खड़े है, केवल विग्यापनों से मुश्किल है। लेकिन टीवी समाचार के दायरे में हेल्थ स्टोरीज का संसार छोटा है, कहें कि अल्प है।

किसी बीमारी को आप तक पहुंचने और उसे शांति से आपकी जान लेने के बाद भी टीवी या सरकार नहीं चौंकती। जब पीड़ितों की संख्या इतनी हो जाए कि खबर बन सके तो आप पाते है कि हर दिन आंकड़ो में आप गिने जा रहे है। तीन दर्जन मरीज आज भर्ती हुए। ये तर्ज भेड़, बकरियों और मुर्गियों को गिनने जैसा है। अट्ठावन जानों का जाना और छह दर्जन बीमार में फर्क है। और टीवी इसे समझने से दूर होता जा रहा है।

बहरहाल बीमारी कोई भी हो, इलाज कैसा भी हो, जब तक हम और आप जानकारी नहीं रखेंगे, तब तक इलाज और मरीज का फासला बड़ा ही रहेगा। सूचना देने वाले की बांट जोहने से अच्छा है कि आप खुद एक कदम बढ़ाएं और सूचना तक पहुंच जाएं। अस्पताल जाना केवल बीमार के लिए नहीं, जानकारी के लिए भी शुरू कर दें। क्योंकि आपकी बीमारी किसी की खबर बनें, इससे ज्यादा पीड़ादायक कुछ नहीं होता।

सूचक
soochak@gmail.com

Send your write-ups on any media on "mediayug@gmail.com"