Communication tools give you the liberty to enjoy. With the boom of Communication in India some offers cost you deadly. They claim that they give you something free and at the end you got that you are cheated.
Media Yug got a mail, the mail was forwarded to news channels also, which show how much coslty the greed affair is.
Read and spread a caution word. We are not a party or any benefit from it, but we are conecrn about the tendency, the offers generate. And afterall this mail was sent to many newschannels. Every viewer of television has the right to know about his weaknesses and ofcourse his RIGHTS.
to: laxmi@mobile2win.com
cc: trai@del2.vsnl.net.in,
himani.bhatnagar@airtel.in,
sanjay.dakwale@airtel.in,
raghunath.mandava@airtel.in,
ruchi.bhutani@airtel.in,
nodalofficer.raj@airtel.in,
appellate.raj@airtel.in,
info@aajtak.com,
info@saharaone.com,
feedback@ndtv.com,
mediayug@gmail.com,
email@indianews.com
subject cheating to a airtel subscriber by mobile2win.com
dear miss laxmi,
i have complaint against u and ur company, being a loyal custmor of airtel since last 6 years, as u know and aware that by playing a game named"naam inaam" on airtelworld.com which was runned by ur company "mobile2win.com".i was declered a proud owner of a samsung lcd tv LA20S51as written in email sent by u on 14th june 2007 to confirm and accept the prize and deposit the TDS amount of Rs 9058. it was also told u telephonically to me on same day. i have sent u TDS cheque no.742523 Citi bank of Rs.9058 on 17/06/2007 which was cleared from my account on 28/06/2007. as u have said tha i will receive my prize within 7-15 days after clearance of tds. i talked to u then after 15 daysof waiting on ur mobile 9323931634 and then u said that due to some technical problems i have to wait for more 10-15 days. after 15 days again i talked to u and then u said that u have sent the request to ur vender Mr. rahim of futurebazar.com and gave me a order no.1000263524 and told me to communicate this person only in future for the gift. then repeatedly i have talked to rahim and u about my gift but both of u did nothing. at last on around 20th of august 2007 rahim told me to send me a form no. 18A for taxation purpose (VAT) which is available only to traders and shopkeepers and impossible for me to arrnge that. then in last of august he told me that samsung tv is out of stock so he can give me LG tv model C2R. i have talked to u have conviced me to accept thatone. i have accepted but next day Mr. rahim told me that he cant give me this one but now he can give LG LZ50. again after talking to u i accepted. ultimately after a long period of 2 and 1/2 month i got the tv on 6 september 2007 which was neither samsung nor LG C2R/LZ 50 it was LG C1R as written on invoice of futurebazar.com.here in jaipur i enquired about these two model C1R and LZ50 and got the information that both these models was obsolete now. again italked to u and u said that dont open the parcel and u will talk to ur senior officials and give 7 days. after that u gave me assurance to take back that parcel and will send me a darft of Rs.26650/ of my gift amount. on monday 17 sept.2007 Mr. rahim phoned me that he will not return the tv and whatever i could do i am free to do. i then talked to u and i am sorry to say that ur response to a customer was not good u told me that we have sent u atv of about same prize either it was samsung or LG i have to accept that u now cant do nothig. remember that playing that game on airtelworld.com and mobile2win.com i have spent about Rs.8000 which was paid by my monthly airtel bills.
now after spending a lot of money and 3 month of my valuable time also my extra money to STD calls to u and rahim i didnt get the thing which i have won. i am complaining to AIRTEL and TRAI about all this matter. also i will go to consumer court.
Dr. Santosh Ailani
D-175, nirman nagar, kings road, ajmer road, jaipur 302019
santoovinita2005@yahoo.co.in
+919829065666
:> This mail was sent on Oct 1, 2007.
Send your write-ups on any media on "mediayug@gmail.com"
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Friday, October 12, 2007
Sunday, October 07, 2007
सूचना के खरीदार आप
किस तरह की पत्रकारिता के खरीदार है आप। सुबह से लेकर शाम तक आपके सामने से कई तरह के संचार साधन गुजरते है। हर की कीमत तय है। अखबार, टीवी, रेडियो और इंटरनेट। सबने बीड़ा उठा रखा है कि वो आपको सूचना देगी। एक ऐसी सूचना, जिसका उपयोग आप अपनी किसी जरूरत को पूरा करने में कर पाएंगे।
अखबार में पहले पन्ने की खबर में से पाई गई एक सूचना से दिनभर की बासी बहसों को नया आयाम मिला करता था। लेकिन आज तमाम और निजी जरूरतों ने इनपर कब्जा कर लिया। किसी से पहली मुलाकात में देश, विदेश और समाज नहीं अब फाइनेंस, गाड़ी, मोबाइल और बेहद ऊपरी बातें होती है। ये हाल तो शहर का है। लेकिन ग्रामीण अंचलों में लोग अब सरकार से ज्यादा लोकल स्कीम्स, व्यवसाय की खबरों, मंडी भाव और मनोरंजन की खबरों को तव्वजों देने लगे है।
टीवी ने जिस ऊबाउपन को दूर किया था, आज वो बीच बीच में आने वाले ब्रेक्स से बढ़ गया। तकरीबन एक सी प्रस्तुतियों से लोगबाग अपनी सामान्य समझ को किनारे रखकर टीवी देखने लगे है। मनोरंजन की विविधता के दर्शन के नाम पर गाना बजाना, फूहड़ हंसी और रोमांच के नाम पर पैसों का खेल। लेकिन इसके भी दो चेहरे है। सरकारी चैनल अभी भी कुछ जमीनी है। वैसे भी दूरदर्शन के दर्शक कम से कम अपने घरों में नैतिकता की शिकायत नहीं कर सकते। निजी टीवी चैनलों की रचनात्मकता केवल बनावटी और नकल को अपने ढांचे में पेश करने में ज्यादा दिखती है। वैसे अपने कांसेप्ट पर हमने जो भी ऊंचाईयां पाई है, वो आज के दौर में इतिहास है। आगे आने वाले दिनों में बेकार समय गुजारने का माध्यम टीवी अगर नहीं बन पाया तो इसके पीछे केवल देशकाल की समझ रखने वाले कंटेट को ही अपनाना वाला होगा। जो हमें अपनी पहचान के पास रखेगा, और टीवी को उसकी।
रेडियो की आवाज बदल गई है। वहां आवाजें तो बहुत है। लेकिन प्रभाव घट गया है। हालांकि रेडियो को इस धमाल का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिसके गाने बजाने से आज रेडियो जिंदा है। एफएम एक पहल थी। जो बीते कुछ सालों में लूप में बजने वाले गाने सी होकर रह गई है। सरकारी रेडियो ने भले ही अपनी मौजूदगी बनाए रखी हो, लेकिन उसका पुरकशिश अंदाज अब पुराना सुर सा लगता है। खबरों के लिए रेडियो सुनने वालों की कमी हो गई है। सुबह शाम बीबीसी सुनने वाले अब कम हो चले है। रेडियो को नई पहचान तो मिली, लेकिन उसकी अतीत अब ज्यादा प्रभावी लगता है।
इंटरनेट पर खबर पढ़ने वालों को माध्यमों की बहुलता से जूझना पड़ता है। आप गूगल पर खोजकर सूचना को ज्यादा उपयोगी नहीं बना सकते। सूचना को सींचना कैसे ये इंटरनेट पर तय करना मुश्किल है। सबसे बड़ी दिक्कत तो स्क्रीन की चंचलता ही है। प्रचार, सामग्री का ऐसा घलमेल होता है कि आप कि एक गलत क्लिंकिग आपका समय ही बर्बाद करती है। और अगर आप किसी ग्रुप के सब्सक्राइबर है तो सूचना के साथ आफर इतने कि आप का जी आजिज। शोध की गहरी संभावना को शायद इंटरनेट ने खत्म सा कर दिया है। इसे पत्रकारिता अच्छे से समझ सकता है।
तो क्या आने वाले वक्त मे हमें एक नए संचार माध्यम की जरूरत होगी। या हम वाहियात सी लगने वाली सूचनाओं से अपने आप को आगे बढ़ाएंगे। बहरहाल जो भी हो आप खरीदार बनें रहेंगे। और जो भी उत्पाद आप खरीदेंगे उसी से तय होगा कि आपकी सूचना क्या है।
सूचक
soochak@gmail.com
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अखबार में पहले पन्ने की खबर में से पाई गई एक सूचना से दिनभर की बासी बहसों को नया आयाम मिला करता था। लेकिन आज तमाम और निजी जरूरतों ने इनपर कब्जा कर लिया। किसी से पहली मुलाकात में देश, विदेश और समाज नहीं अब फाइनेंस, गाड़ी, मोबाइल और बेहद ऊपरी बातें होती है। ये हाल तो शहर का है। लेकिन ग्रामीण अंचलों में लोग अब सरकार से ज्यादा लोकल स्कीम्स, व्यवसाय की खबरों, मंडी भाव और मनोरंजन की खबरों को तव्वजों देने लगे है।
टीवी ने जिस ऊबाउपन को दूर किया था, आज वो बीच बीच में आने वाले ब्रेक्स से बढ़ गया। तकरीबन एक सी प्रस्तुतियों से लोगबाग अपनी सामान्य समझ को किनारे रखकर टीवी देखने लगे है। मनोरंजन की विविधता के दर्शन के नाम पर गाना बजाना, फूहड़ हंसी और रोमांच के नाम पर पैसों का खेल। लेकिन इसके भी दो चेहरे है। सरकारी चैनल अभी भी कुछ जमीनी है। वैसे भी दूरदर्शन के दर्शक कम से कम अपने घरों में नैतिकता की शिकायत नहीं कर सकते। निजी टीवी चैनलों की रचनात्मकता केवल बनावटी और नकल को अपने ढांचे में पेश करने में ज्यादा दिखती है। वैसे अपने कांसेप्ट पर हमने जो भी ऊंचाईयां पाई है, वो आज के दौर में इतिहास है। आगे आने वाले दिनों में बेकार समय गुजारने का माध्यम टीवी अगर नहीं बन पाया तो इसके पीछे केवल देशकाल की समझ रखने वाले कंटेट को ही अपनाना वाला होगा। जो हमें अपनी पहचान के पास रखेगा, और टीवी को उसकी।
रेडियो की आवाज बदल गई है। वहां आवाजें तो बहुत है। लेकिन प्रभाव घट गया है। हालांकि रेडियो को इस धमाल का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिसके गाने बजाने से आज रेडियो जिंदा है। एफएम एक पहल थी। जो बीते कुछ सालों में लूप में बजने वाले गाने सी होकर रह गई है। सरकारी रेडियो ने भले ही अपनी मौजूदगी बनाए रखी हो, लेकिन उसका पुरकशिश अंदाज अब पुराना सुर सा लगता है। खबरों के लिए रेडियो सुनने वालों की कमी हो गई है। सुबह शाम बीबीसी सुनने वाले अब कम हो चले है। रेडियो को नई पहचान तो मिली, लेकिन उसकी अतीत अब ज्यादा प्रभावी लगता है।
इंटरनेट पर खबर पढ़ने वालों को माध्यमों की बहुलता से जूझना पड़ता है। आप गूगल पर खोजकर सूचना को ज्यादा उपयोगी नहीं बना सकते। सूचना को सींचना कैसे ये इंटरनेट पर तय करना मुश्किल है। सबसे बड़ी दिक्कत तो स्क्रीन की चंचलता ही है। प्रचार, सामग्री का ऐसा घलमेल होता है कि आप कि एक गलत क्लिंकिग आपका समय ही बर्बाद करती है। और अगर आप किसी ग्रुप के सब्सक्राइबर है तो सूचना के साथ आफर इतने कि आप का जी आजिज। शोध की गहरी संभावना को शायद इंटरनेट ने खत्म सा कर दिया है। इसे पत्रकारिता अच्छे से समझ सकता है।
तो क्या आने वाले वक्त मे हमें एक नए संचार माध्यम की जरूरत होगी। या हम वाहियात सी लगने वाली सूचनाओं से अपने आप को आगे बढ़ाएंगे। बहरहाल जो भी हो आप खरीदार बनें रहेंगे। और जो भी उत्पाद आप खरीदेंगे उसी से तय होगा कि आपकी सूचना क्या है।
सूचक
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