Monday, December 31, 2007

साल 2007 में भारतीय टेलिविजन

साल के आखिरी दिन सोचना जरूरी है कि क्या बीता। क्या देखा। क्या जाना और क्या सुना। बीते साल के आखिरी दिन यानि 31 दिसम्बर 2006 को दिल्ली में डीटीएच लागू करने का आखिरी दिन था। वो लागू न हो सका। लेकिन टीवी पर सबकुछ चालू रहा। जाते साल में टीवी पर गंभीर-अगंभीर सबकुछ दिखा। देखने लायक से बोर होने लायक तक।

वैसे आप इसे हादसों का साल कह सकते है। हैदराबाद से लेकर अजमेर तक बम फटे। मासूम लोगों की दर्दनाक तस्वीरें चैनलों पर कई दिन तक चलती रही। और हमारी चेतना को ये जगाने के लिए काफी था।

आंदोलनों का भी साल रहा। गुज्जरों ने उत्तर भारत को हिला और ठहरा सा दिया। नंदीग्राम का आग ने वाम दलों को हिलाया। पूरे देश में जमीन और अधिकार की बात को टीवी न कहते हुए भी दिखा रहा था।

उछाल के लिए किसी पोलवाल्ट प्लेयर की मिसाल को सेंसेक्स ने पीछे छोड़ दिया। अभी आप उठे नहीं कि टीवी पर सेंसेक्स ने एक हजार की छलांग लगा दी। लाखों करोंड़ो के वारे न्यारे। लेकिन एक डर के साथ। लेकिन टीवी पर इसे हमेशा सकारात्मक तरीके से पेश किया गया।

गर्मी भी छाई रही। साल भर ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा रही। और आर के पचौरी को साझा नोबेल मिलने से इसे गर्मी मिली। तापमान बढ़ रहा था। और इसका असर पूरे देश में गर्मी बढ़ने के साथ महसूस किया गया। देश की राजधानी को बरसात की झलक कम ही मिली। हालांकि देश के कई भाग डूबे से रहे।

जो उभरा वो सितारा। यानि साल भर एक ही सितारे ने हर टीवी चैनल पर अपनी मौजूदगी दिखाई। शाहरूख खान। यकायक लगा कि शाहरूख हर कहीं है। वे चक दे के कोच के साथ साथ अपने दोनों ओम किरदारों के साथ शांति का संदेश देते रहे। क्रिकेट हो या रियल्टी शो। शाहरूख का रूख हर जगह दिखा।

दिखी तो दो गुमनाम महिलाएं भी। एक भूली बिसरी मॉडल- गीतांजलि नागपाल और एक सताई गई महिला- पूजा चौहान। दोनों ने सड़क पर से टीवी के पर्दे पर कई दिनों तक जगह बनाई। एक ने इलाज पाया तो दूसरी को इलाज की जरूरत बताई गई। खैर ये नारी की ताकत ही कहा जाएगा। पूरे साल नारी की ताकत का ये सबसे सशक्त नजारा था, जो टीवी पर रहा।

माधुरी का आना, नचले का फसाना। रास न आया। विवाद भी जुड़ा। या जोड़ा गया। लेकिन किसी को उनका ढ़लता रूप रास न आया। आजा नचले को टीवी ने प्रमोशन कम दिया, खींचा ज्यादा।

वहीं ओम शांति ओम और सांवरियां के खाते में खड़े रहे टीवी चैनल। बेचते रहे। दिखाते रहे कि क्लास और मास में एक बड़ी दूरी है। और लोकतंत्र में जीतता तो क्लास ही है। सो ओम शांति ओम जीतती रही।

राजनीति का रूख तकरार वाला रहा। पहले एन-डील, फिर रामसेतु, फिर नंदीग्राम, फिर गुजरात- सभी जगह यूपीए कमजोर रही। विपक्षी इसका फायदा तो उठाते रहे, लेकिन देश के लिए किसी ने भी विजनरी का रूख नहीं दिखाया। टीवी ने नंदीग्राम, एन-डील, गुजरात को वेदी मानकर वाम, कांग्रेस और मोदी को चढ़ाया। नतीजा केवल अभी तक मोदी के पक्ष में ही रहा। वे करण थापर के इंटरव्यू में बीच में उठकर चले जाते है। उनका विखंडित समाज इसे उनका अपमान मानता है। वे बंपर जीतते है।

कभी अंदर तो कभी बाहर। संजय दत्त और सलमान खान तो साल भर यही करते रहे। हर बार मीडिया में अपील। मानो बिन गलती के सजा भुगत रहें हो। खैर टीवी ने इसे खूब दिखाया। शायद इसे ही वो सबकी खबर मान चुका है।

साल भर जिस खुमार को टीवी भुनाता रहा, वो क्रिकेट का रहा। खैर हम जीतते हारते रहे। 20-20 में धोनी की जीत तो खैर सचमुच मायने रखती है। इसके साथ ही हाकी में भी चक दे इंडिया की धुन पर टीवी हमारी जीत दिखाती रही। जीते तो विश्वनाथन आनंद भी। लेकिन एयरपोर्ट पर उनका स्वागत कैमरों ने कम ही किया।

आसमान में सैटेलाइटों के ऊपर एक महिला ने कई महीने बिताएं। वो भारतीय मील की थी। सुनीता विलियम्स भारत आई। टीवी पर एक हफ्ते वो खूब खबरों में रही।

शादियां आसमान में तय होती है। और अभिऐश की शादी में न्यौता मिलना भी आसमानी सौगात रही। टीवी चैनल बाहर रहे। अंदर शादी चलती रही। टीवी के लिए सबसे कमजोर वक्त था। निजी जिंदगी में उसकी दखल के बढ़ने के बाद उसे दरवाजे पर खड़ा रखना जरूरी था। हुआ वही। घरों के बाहर वो बिन बुलाए बाराती की तरह मौजूद रहा।

खरीदारी का साल रहा। लक्ष्मी निवास मित्तल ने आर्सेलर पर कब्जा जमाया, तो टाटा कोरस के अपने झोले में ले आई। ये
खबरें रही। खैर सोना मंहगा, कारों के नए नए मॉडल के साथ देश मजबूत होता दिखा।

मजबूत को मायावती भी हुई। टीवी ने इसे दिखाया। और इस मीडियायुग में उन्होने अपने तरीके से चुनाव जीता। टीवी उनके बढ़िया प्रदर्शन को राजनीति की नई पहल की पहल की तौर पर पेश करता रहा।

लेकिन साल के अंत में जिस घटना ने टीवी के पर्दे को हिला दिया, वो रहा बेनजीर की हत्या का मामला। टीवी ने हर ओर से इस घटना को दिखाया। और कोशिश की कि उसकी गंभीरता बनी रहे।


उम्मीद है इस साल टीवी पर आपको दिखेगा कुछ नया। नया यानि जो आपकी पसंद से जुड़ा हो। और जिसे आप सूचना के तौर पर तो कम से कम उपयोग किया जा सके।

सूचक
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1 comment:

इरफ़ान said...

नए साल में आप और भी अधिक ऊर्जा और कल्पनाशीलता के साथ ब्लॉगलेखन में जुटें, शुभकामनाएँ.

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