विश्वसनीयता का मानक क्या है। किसी बड़े हादसे के बाद टीवी के सामने ये सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है। पाकिस्तान की आला नेता बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद टीवी पर खबरों का रूख पल पल बदलता नजर आ रहा है। पहले जिसे गोली से लगने वाली मौत माना जा रहा था, वो सरकारी बयान के बाद एक हादसा सा दिखाया गया। लेकिन इसे काटने के लिए भारतीय टेलीविजन चैनल एक से एक बढ़कर दावे पेश कर रहे है। आज एक प्रमुख समाचार चैनल ने एक ब्लाग पर से दिखाई गई तस्वीरों के बिना पर पाकिस्तान के सरकारी दावे की धज्जी उड़ाई। इन तस्वीरों को आप भी देखिए..
जाहिर है इस ब्लाग पर दी गई इन तस्वीरों में बहुत कुछ साफ नहीं है। लेकिन ये ब्लाग की ताकत को दिखाता है। चैनल ने लगातार कई घंटों तक ब्लाग के नाम और उसमें कहीं गई बातों को दिखाया। ऐसा शायद पहली बार हुआ है, जब एक बड़ी राजनीतिक हत्या के बाद एक ऐसे सोर्स को पेश किया गया, जो पाकिस्तान में तो अभी नया ही कहा जा सकता है।
भारतीय चैनलों की इस हड़बड़ी को समझना जरूरी है। दरअसल कल दिन से ही एक अंग्रेजी चैनल ने पाकिस्तान में द हिंदू अखबार की संवाददाता के जरिए इस बात को बताया कि कैसे बेनजीर की हत्या के वक्त वे मौका ए वारदात पर थी। फिर हिंदी के समाचार चैनलों ने पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री जावेद चीमा के बयान को आधार मानकर थ्योरी को स्कल डैमेज से जोड़कर दिखाया गया। कहीं न कहीं सरकार के नजरिए को चैनल दिखा रहे थे। जबकि आज उनका रूख बीच वाला था। शाम से ही भारत में चैनल गोली की थ्योरी और स्कल डैमेज के बीच अंतर को दिखा रहे थे। पत्रकारीय सोच की एक झलक दिख रही थी। लेकिन पल पल बदलने वाले इस हादसे में जांच का रूख तय करता पाकिस्तान की सरकार ही दिख रहा था।
वैसे शाम तक ब्लाग पर दिखी तस्वीरों से एक बार फिर दिखा एक आम नजरिया। जो कहीं न कहीं सरकार के दावों की धज्जियां उड़ा रहा था। खैर सूचना के इस दौर में नए खुलासों के लिए इंटरनेट की इस नई दखल का स्वागत किया जाना चाहिए।
"सूचक"
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Sunday, December 30, 2007
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