Saturday, September 09, 2006

ये बदलाव की बयार है...

कोई भी बदलाव एक झटके में नहीं होता। न ही कोई विकार अचानक पैदा हो जाता है। हम समय के साथ चल रहे हो तो कोई बुराई नहीं है।हम समय के आगे भाग रहे हो तो कोई दिक्कत नहीं। पर यदि समय को सीमित करने की, विचार को संकुचित करने की, सोच को दिशाहीन करने की कोशिश कोई संस्थान करे तो वक्त बगावत करने लगता है। आवाजें उठने लगती है। तरंगे पैदा होती है। भारतीय टीवी मीडिया में उत्थान का दौर केवल आंकड़ो की जुबानी गाया जा रहा है। नैतिकता और मानवता की बलि देकर। कही वीभत्स विज़ुअल है तो कही किसी के जीवन की गंदगी का बखान। कहीं एजेंडा है तो कही गुणगान। इस दौर में बदलाव की जरूरत है। आपके सहयोग की जरूरत है। हम उन सभी लेखकों को आमंत्रित करते है, जो समकालीन मीडिया का साप्ताहिक, मासिक या घटना विशेष पर विश्लेषण करें। ये समय के अनुकूल होगा कि हम जारी रहें। क्योंकि बदलाव हमें ही करना है। हमारी कोशिश होगी कि बेहतर प्रभावी लेखों को भारती अखबारों में ज्यों का त्यों प्रकाशित करवाएं। ये इनाम भी होगा और उपादेयता भी। इंतजार है आपके बदले हुए रूख का।

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