Monday, November 13, 2006

हफ्ता गुजरा टीवी पर (2-10 नवम्बर)

मीडिया खेलता है। न्यूज़रूम खेलते है। राम जेठमलानी कहते है। दोषी कौन है। अदालतें तय करती है। वैसे भी सुबूतों पर ही न्याय टिका है। और टीवी भी। कैसे। आप जो देखते है। उस पर न्याय करते है। खबर सही है या गलत आप नहीं जानते। सो वैसा सोचते है, जैसा देखते है। देखिए। रविवार। छुट्टी का दिन। पर अदालत खुली रही। सद्दाम की छुट्टी जो करनी थी। एक मुल्क की किस्मत का रखवाला खिदमत को तैयार नहीं। सो दे दो फांसी। हालांकि ये किसी टीवी ने नहीं कहा। दरअसल सद्दाम के पूरे शासनकाल में ढाई लाख लोग मारे गए और पिछले दिनों अमेरिकी हमलों में सात लाख। पर मारे दोनों ने। सो सजाए मौत। एक को आज। एक को पता नहीं कब। टीवी न सोचता है, न सोचवा रहा है। सरकार भी नहीं सोच पा रही है।।क्या करे, क्या नहीं। सीलिंग करवानी है। सरकार को कुल्हाड़ी खुद के पैरों में मारनी है। पर अदालत का फरमान। मजबूर, परेशान, हैरान। सरकार और व्यापारी दोनों। वैसे अपनी करनी का फल सरकारें भोग रहीं है। तभी तो अमेरिका में में गधे जीत रहे है। डेमेक्रेट जीत रहे है। लोकतंत्र जीत रहा है। और शायद परमाणु करार हार रहा है। पर जीत भी हो रही है। और बेइज्जती भी। चैम्पियंस ट्राफी में आस्ट्रेलिया जीता। सो मंच पर रिकी पोटिंग और डेमियन मार्टिन ने हारी भारतीय क्रिकेट टीम के आलमबरदार शरद पवार साहब को जाने के कह दिया। वैसे दर्शक बोर हुए। उमराव जान को देखकर। मजा नहीं आया। एक सिनेमा हाल से निकलते दर्शक ने कहा। कैसी कैसी अफवाहें। पर सब बेकार गई। अब शादी का क्या होगा ऐश। उसे भी उतर जाने का संकत दे दिया। दर्शकों ने। कुछ ऐसे ही संकेत मायावती ने मुसलमानों को दिए है। कम से कम टीवी यही बखा रहा है। टीवी पर अमिताब को डाक्टरेट लेते देखा होगा। योग्यता का एक और पैमाना। पर टीवी तो जूनियर अमिताब के हेयर स्टाइल के देखता रहा। देखिए लोकप्रियता भी किस किस चीज से मिल जाती है। धोनी खेलते है। पीटते है। और बालों को लहराते है। और बाल भी कटवाते है। सो इस कटिंग को टीवी के दो महान चैनलों ने कवर किया।क्या करें हमेशा बोरियत भरे खबरें कितना चलाएं। जो गंभीर खबरें है, वे आती है। पर धूप में बरसात की तरह। सियार की शादी की तरह। और देखिए चुनाव भी तो देश में शादी की तरह होते है। यूपी में हुए। नगर निकायों के। हो हल्ले के साथ। गोली बंदूक के साथ। धनबल के बीच। सो जीती जातियां और पार्टियां। दल और बल। हारा वोटर और मतदाता। हारा को पर्यटन भी। जयपुर में नंगानाच किया विदेशियों ने। देश के नियम तो केवल देशी के लिए होत है न। नियम , ताक पर रखे जा चुके है। नागपुर में दलितों के प्रोटेस्ट पर हुए तमाशे को तो देखा होगा। चलिए चलता रहेगा ये सब। जानते रहिए देखते रहिए टीवी।

'सूचक'
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2 comments:

संजय बेंगाणी said...

इसे पढ़ते हुए लग रहा था, खबरे फटाफट सुन रहे है.

bhuvnesh sharma said...

आपका ये चिट्ठा पढ़कर हम टी.वी. ना देखने वालों को भी खबरों की जानकारी हो जाती है