क्या देखा इस हफ्ते आपने। खबरें या हीरोज़। देखा ही होगा आपने। लिटिल चैम्प हो या नच बलिए। ये छाए रहे। संचिता, दिवाकर, समीर। मोना सिंह। इन्हें उत्तर भारत ने जम कर देखा। अब ये अलग बात है कि सिम खरीदकर वोटिंग करवाना गलत नहीं है। सो खबरों में जो चला वो कितना याद होगा। सर्वे भी आ गया कि भारतीय न्यूज पांच से दस मिनट के बीच देखते है। लीजिए। वैसे फांसी की दरकार की बात थी। सो कोर्ट ने कही दी जाए। संतोष को फांसी जी जाए। सुशील शर्मा के साथ रखा जाए। कौन सुशील। तंदूर कांड वाला भई। देखिए टीवी इतिहास को कितना कम याद करता है। केवल जीत न्याय की नहीं, भावना की हुई। लोकतंत्र में लड़ते रहने की हुई। लड़ ही रहे थे। पहले प्रधानमंत्री के लिए, फिर उपप्रधानमंत्री के लिए। प्रणब दा। विदेश मंत्री बना दिए गए। एंटनी को डिफेंस। खैर टीवी की इंट्रेस्ट जेपी यादव में रही। दागी मंत्री जी दोबारा मंत्रिमंडल में। मंत्री अगर मुख्य हो तो उसका रसूख खूब होता है। तभी तो कर्नाटक के सीएम के बेटे ने खूब धमाल मचाया। ताकत है। जोड़ो में या ज्योतिष में। ऐश की फिल्म अभिषेक के साथ आ रही है। पिछली बार टीवी ने ब्रेक किया था, कि अजिताब बच्चन कुंडली मिलवाने आए है। इसबार अमिताब चाहते है कि वे बेटे के बेटे के दादा बने। पर ध्यान रखिए इस पेयर की फिल्म आ रही है। और जहां टीवी ने उन्हे घेरा वहां जेपी दत्ता भी थे। बीत में बैठे। खैर अमिताभ को ये सोचना चाहिए कि बच्चों की फिक्र उन्हे जरूर करनी चाहिए। आखिर पोलियो के मामले राजधानी में मिले है। एक दिन तो ऐश्वर्या का जन्मदिन टीवी ने ऐसा मनाया कि लगा वे रियल लाइफ में महान है। वे अकेली तो मिस वर्ल्ड नहीं। और न ही खूबसूरत।पर टीवी प्रचारों में छाई है, सो खूब दिखाने में क्या हर्ज है। दिखे। पीएम भी। सिक्योरिटी लैप्स या कोई साजिश। टीवी सोचता थोड़ा है। माना कि थ्रेट है। माना कि ईमेल है। पर इंसानी गलती तो मान्य है। पर माफ करिए टीवी पर नहीं। तभी तो टीवी पर एंकर न जानते हुए भी बैठते है। और गलत जानकारी देने पर भी माफी नहीं मानते। खैर जानते तो आप भी नहीं। जानते तो मोबाइल को दिल से लगा कर नहीं रखते। अरे भई मर्द की मर्दानगी को खतरा है सेल। ये खबर झूम के चली। पता नहीं जानकारी थी या कुछ था ही नहीं चलाने को। क्योंकि एक चैनल पर तो ब्रेक में सेलफोन का एड ही चला। एड और एड्स में कितना अंतर है। खबर भर का।क्योकि एड़्स के एड तो आप खूब देखते है, पर जब वो तबर बन जाए तो अलग दिखता है। सो बिहार पुलिस में जब एड्स की खबर को एक्सक्यूजिव दिखाकर चलाया गया तो समझ नहीं आया कि ये खबर है या जानकारी। एक और जानकारी। अबू सलेम से जुड़ी। रूकिए उसे फांसी नही होने जा रहा है। लोकतंत्र है भई। सो चुनाव उसका है। सजा भोगे या मजा। सो एक पोस्टर दिखा टीवी पर। कहा गया कि चुनाव लड़ेगी भाई। लड़ने दीजिए। जीतने दीजिए। कौन से अपराधी कम है राजनीति में। आग लगी। सो खबर बनी। रिलायंस के रिफायनरी में धधका। देश में लगा कि कल खाना बन पाएगा या नहीं। आयात करो। पर टीवी को विजुअल एक्सक्लूजिव की चिंता रहा। ये जानना मुश्किल रहा कि असल में इससे असर क्या पड़ेगा। असर पड़ेगा। महिला पर अत्याचार करना भूल जाइए। कानून आ गया है. पर टीवी ने ही कलई खोल दी। की मामले दिखाए कि कानून हो चाहे न हो मानसिकता नहीं बदलेगी। क्यों बदलें। हम ऐसे ही है। यूं ही त्यौहार मनाते है, सेवईयां खाते है, गले मिलते है। ईद मनाते है। अच्छा लगा टीवी पर भाईचारे को देखकर। पर मैच में भाईचारा कम होने लगा है। मैच लड़े जाते है। प्रचार वार करते है। और करार पाई कंपनिया एक दिन का खर्चा नहीं निकाल पाती। खैर ये तो चलता रहेगा। देखते रहिए टीवी।
'सूचक'
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2 comments:
श्रीवास्तव जी आपने तो हफ़्ते भर की न्यूज एक झटके में सुना डाली।
लिखते रहिए हफ़्ते भर की न्यूज कम से कम एक जगह तो पढ़ सकते हैं
चलिए मिलते है अगली खबर के लिए छह दिन के ब्रेक के बाद.
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