Friday, March 16, 2007

गोलियों से मरता टीवी का चेहरा

एक देश में एक विचारधारा के दो चेहरे। पश्चिम बंगाल में किसान पर सरकार गोलियां चलवा देती है, तो छत्तीसगढ़ में सरकार पर नक्सली हमला बोल देते है। ये टीवी को समझना चाहिए। एक दूसरे को बरक्स रखकर खबरें दिखाने में नाकाम रहा टीवी। एक दिन में इस विचारधारा के दो चेहरे तो दिखे, पर उन्हे समझने के लिए आईना न बना टीवी। लोगों को ये खला होगा कि दोनों ही घटनाओं में मरने वाले का दोष इतना रहा कि वो एक व्यवस्था का विरोध कर रहा था। एक असंतुलित व्यवस्था। एक ऐसा आईना बनता जा रहा है टीवी जिसमें शक्ल देखना अब दूभर लगता है। पता नहीं कब आप किसी गंभीर खबर को सस्तेपन की गोलियों से छलनी होता पाएं। बंगाल में जो विरोध पिछले कई महीनो से जारी था, वो अचानक इतना उग्र हो गया कि पर्दो पर मरने वालों की खून की एक बूंद आ गई। कैमरों में कैद तस्वीरों से सच दिखता है। पर उसे पेश करने के तरीके से वो धुंधला हो जाता है। नक्सली को समझाने में टीवी कभी आगे नहीं आया है। वो आंतकवाद को समझाता है। अमेरिका को बताता है, इरान और इराक का हाल पेश करने की ताकत खो चुका है टीवी। वो रायटर्स और एपी की स्क्रिप्ट्स को अनुवाद करते वक्त ये नहीं सोचता कि ज्यों का त्यों लिखना इतिहास में दर्ज होने की बुनियाद नहीं बनाता है। पिछले सालों में कई राज्यों में जमीन और हक की लड़ाई लड़ रहा आदमी हिंसा का रास्ता कब अपना लेता है, ये सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक सवाल टीवी पर नहीं उठता। उठती है तो धांय धांय की खबरें। इतने मरे। इतने भागे। और इतने हो चुके है वे मजबूत। कौन कर रहा है उन्हे मजबूत। टीवी। क्यों नहीं अब टीवी की पत्रकार दंतेबाड़ा औऱ सिंगूर में जाकर सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक विपन्नता की खबर करता है। क्यों नहीं वो बता रहा है कि जमीन केवल फसल उपजाने का जरिया नहीं, वो अपनी पहचान का भाग है। क्यों वो ये भी नहीं समझा पा रहा है कि उद्योग के विकास से किसान का भी विकास छिपा हो सकता है। टीवी नहीं समझता और समझाता है। जरूरत भी क्या है। कौन देख रहा है। जरूरत प्रचार की है। ब्रेक की है। औऱ है हिंसा को यदा कदा दिखाने की।

सूचक
soochak@gmail.com

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1 comment:

Raag said...

Research, that is the key word. We Indians are poor in that arena. Presenting any report or documenting anything needs research capabilities. Ill trained journalist cannot do that. That's the truth we are seeing on TV and even in news papers.

PS: SOrry for writing in English, but am in college and cannot type in Hindi.