Monday, March 26, 2007

तुम भी नंगे, हम भी..


स्टिल कैमरों के फ्लैश। वीडियो कैमरों के जूम और पैन। कतार में बैठे लोगों की आती जाती निगाहें। माडलों की एकटक देखती जिंदा आंखें। और कम और क्रियात्मक कपड़ों में लोग बाग। स्वागत है आपका विल्स लाइफस्टाइल फैशन वीक में। टीवी के लिए बहार जैसा आयोजन। कुछ नहीं करना। सीधी सादी फुटेज और झमाझम मसाला। जम के चलाओ। चौवालीस रैम्प शो हुए। और हर चैनल को पूरे एक दिन के बराबर, यानि लगभग चौबीस घण्टे का फुटेज चलाने को मिल ही गया। फैशन को समझना मुश्किल है। पहले ये फिल्म वाले तय करते थे, कि फैशन क्या हो। अब टीवी वाले। रैम्प पर सधी चाल से चलते माडलों के साथ कैमरा भी सधापन दिखाता है। लोग टीवी पर इसे देखकर एक नई दुनिया से साबके का अहसास पाते हैं। ये नई दुनिया है जिसे टीवी ने बिना जाने समझे परोसा है। क्यों डिजाइनर की बनाई बनावटें अजीबोगरीब होती है। ज्यादातक दर्शक यही सोचता है। ये कुछ कुछ तेज संगीत और लकदक लाइटों के बीच रंगरोगन की नुमाइश से ज्यादा कुछ नहीं लगता। फैशन परेड का टीवी पर दिखना निरर्थक ही है। टीवी देखने वाले बड़ा समुदाय अभी भी ब्रांडेड और फैशन मेलों से दूर सास-बहु सीरियलों में खुद को तलाश रहा है। मायावी घरो में मायावी औरत-मर्द खुद को एक विशेष दुनिया में, आपके करीब होने का नाटक करते है। और आप बंधे रहते है। वैसे ही फैशन वालों का हाल। वे बनाते है, उनके लिए, जो विदेशी बाजारों में बड़ी श्रंख्ला के दुकानदार होते है, जिन्हे बायर कहते है। या उनके लिए, जो राजहमहलों में शादी रचाते है। वैसे टीवी ने लोकतांत्रिक होने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। नग्नता और दिखावे के बीच मध्यमार्गी होकर चलने वाले टीवी की पहचान इसी वजह से शायद मध्यम ही बनी हुई है। खैर जिन चार रैम्प प्रदर्शनो में मेरी भी नजरें डोल रही थी, उनमें से दो लुभावने थे। एक राघवेन्द्र राठौड़ का, और दूसरा मीरा और मुजफ्फर अली का। भारत को टीवी अब भी उन्ही नजरो से देख रहा है, जिनसे बायर देशी कपड़ों को। लुभावना और बेचने लायक। टीवी को मुबारक ये रंगीनी। और फैशन को मुबारक हो टीवी।

सूचक
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5 comments:

योगेश समदर्शी said...

... और आपको मुबारक यह अवसर कि रैंप का जिक्र कर सके, टीवी चैनलों कि तरह ब्लाग मेकरों को भी खूब मसाला मिल रहा है शायद. आखें भी पोशित और मन की भडास भी अच्छे से निकल गई हैं ना .....

Anonymous said...

hi .its nice summation of fashion world. but needs tobe written in much better way. the usage appropriate words would have increase its weigtage.

monica

Anonymous said...

Hi

I am in search for a Hindi journalist who has got 5/6 years of experience [ both in field and desk.

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Hari

Rachna Singh said...

फैशन को समझना मुश्किल है। पहले ये फिल्म वाले तय करते थे, कि फैशन क्या हो। अब टीवी वाले।
you are wrong , the trends are formed by a autorized world design forum . these are business events and not for pleasure hunting
your article is more informative then other articles by various hindi bloggers who feel that because they have been given a spance rather a free space they can write any thing about any business meeting . i wish you had given a more serious heading to your post

Soochak said...

Dear rachna,

I appreciate that, u'have noticed that I am getting the wrong point, but I am not specific about the authority, my whole wordings are for trend and the changing practices of media.