सूचना अपने रास्ते खुद ब खुद बना लेती है। जैसे पानी। लेकिन ऐसा कौन सा जरिया है जो किसी सूचना को सबसे प्रभावी तरीके से आप तक पहुंचा सकता है। प्राचीन समय में नगरों में राजा के दूत ढोल नगाड़े बजाकर लोगों को ऊंची आवाज में सूचित करते थे। ये सिलसिला लिखने पढने की सहजता और स्वीकार्यता के बाद कागजों पर छपवाकर बंटवाने में जारी रही। देश का जो पहला प्रिंटिंग प्रेस लगा, वो एक मिशन के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए ही लगा। और यहीं से शुरू हुआ दिन भर की घटनाओं को छापकर लोगों को जागरूक बनाने का काम। फिर संचार माध्यमों के विकास के साथ हम आप दृश्य श्रव्य माध्यमों की बदौलत आज जिस भी मुकाम पर है, वो सुविधाजनक कहा जा सकता है।
एक फ्रेज है वर्ल्ड आफ माउथ। इसका अर्थ है मुंहजबानी। यानि एक खबर की मंजिल उसे कई जबानों से मिलती जाती है। जैसे एक बात जो पत्रकारिता में हर कोई कभी न कभी कहता सुनता मिलता है। कि राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि सौ रूपए का दस पैसा ही वहां तक पहुंचता है जहां के लिए वो सौ रिलीज हुआ है।
आज के जमाने में वर्ल्ड आफ माउथ की अहमियत है। समय नहीं है। पढ़ने की रूचियां कम हो रही है। देखने सुनने के लिए पूरा संसार टीवी पर है। लेकिन काम से बचे वक्त में देखना भी तय हो चुका है। सबकुछ नहीं देखा जा सकता है। तो एक शहर में ऐसा क्या बचा है जो अनोखा है।
अनोखा है वार्ताफलक। वार्ता यानि बातचीत, फलक यानि वो स्थान जहां कुछ देखा जा सके। या मैं थोड़ा सा अर्थ में भ्रमित हूं।
पूना या पुणे में आज भी हर चौराहे हर गली पर आपके एक वार्ताफलक टंगा या रखा दिखेगा। ये अनोखा इस अंदाज में है कि इसमें आपको सबकुछ लिखा मिल सकता है। खबर, असर, नैतिकता, धर्म, अधर्म, टिप्पणी आदि।
पुणे में ये क्यो जीवित बचा है ये सवाल गौर करने लायक है। ये अपने आप में सामुदायिक भावना का प्रतीक है। और एक तरह की जीवंत पत्रकारिता का संबल।
सराय के जरिए एक शख्स इस विरासत पर शोधरत है। हमें उम्मीद है कि जो भी नतीजे आएंगे वे समाज की इस विधा को आगे बढ़ाने में मददगार ही होंगे।
http://vartaphalak-photos.blogspot.com/
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Saturday, June 30, 2007
Wednesday, June 27, 2007
टीवी को है किसकी सुध
एक ऐसा खांका जो भारतीय राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया की आंखे खोलने को पर्याप्त है। ये एक ऐसा सच है जिससे हमारे देश का टेलीविजन मुंह मोड़ चुका है। आज के समय में अगर वजहें तलाशी जाएं तो हम केवल एक शब्द में सिमट जाएंगे। बाजार। जहां मॉल है, उत्पाद है, सेल है, शहर है। यहां गरीबी का अभाव है। यहां कल का अभाव है। आज में जीने वाले बाजार को आज का टीवी परोस रहा है। हर दिन का तमाशा तय है। हर दिन के फिक्स्ड प्वाइंट चार्ट भी डिसाइड है। कैसे खबरों को दरकिनार करके समाज को वो दिखाने की होड़ लगी है, जिसे आज से पचास साल पहले सौ साल पहले हमारे कर्णधार दकियानूसी बता चुके है। वे तब धारा के खिलाफ थे। आज हम धारा के बीच है। आज टीवी पर अंधविश्वास है, टोना टोटका है, अंधविश्वास की भुतहा पेशकश है, तंत्र मंत्र है, अपराध है, ज्योतिष है, नाजायज संबंध है, सेलेब्रिटी की पल पल की गतिविधियां है, शहरों की चमक है, बहसे मुबाहिसे है, एसएमएस पोल है, नेताओं से जुड़े हल्के किस्से है, फिल्म है, फूड है, सेक्स है, क्राइम है, और है तमाम नाकाबिले बर्दाश्त की जाने वाली पेशकशें।
तो आखिर हम कहां जा रहे है। कभी कभी अच्छी खबरों की टाइमिंग देखकर लगता है कि चैनल भी न चाहते हुए उन्हे चला रहे है। हर राजनैतिक खबर पर तंज का भाव दिखता है। हर बेरहमी में नाइंसाफी की चीखो पुकार। और हर गलती पर बस फांसी देने का सुर।
क्या सामाजिक तौर पर जिम्मेदार इन समाचार चैनलों को ये बताना पड़ेगा कि हम एक विविधता वाले देश है, जहां धर्म, कर्म और मोक्ष के बाद चीजें मायने रखती है। सुख शांति और समृद्धि के लिए आज माध्यम कई है। लेकिन टीवी से जुड़कर आप सबसे कट जाते है।
एक टीवी को नैतिक रूप से क्या होना चाहिए, तय होना बाकी है। तबतक एक विदेशी चैनल की सुध देखिए। जो काम हमें रोजाना करना चाहिए वो, वे कभी कभी करते है। अनुरोध है इस प्रयास को यूं ही न आंकिए। उन्हे भी बाजार देखना है। और भारत की गरीबी दिखाकर बाजार नहीं जोड़ा जा सकता। तो क्यों भारतीय माध्यमों पर मर चुके इस मुद्दे को वे दिखा रहे है।
जवाब। पत्रकारिता और सरोकार है जनाब।
Agricultural Problems Lead to Farmer Suicides in India
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तो आखिर हम कहां जा रहे है। कभी कभी अच्छी खबरों की टाइमिंग देखकर लगता है कि चैनल भी न चाहते हुए उन्हे चला रहे है। हर राजनैतिक खबर पर तंज का भाव दिखता है। हर बेरहमी में नाइंसाफी की चीखो पुकार। और हर गलती पर बस फांसी देने का सुर।
क्या सामाजिक तौर पर जिम्मेदार इन समाचार चैनलों को ये बताना पड़ेगा कि हम एक विविधता वाले देश है, जहां धर्म, कर्म और मोक्ष के बाद चीजें मायने रखती है। सुख शांति और समृद्धि के लिए आज माध्यम कई है। लेकिन टीवी से जुड़कर आप सबसे कट जाते है।
एक टीवी को नैतिक रूप से क्या होना चाहिए, तय होना बाकी है। तबतक एक विदेशी चैनल की सुध देखिए। जो काम हमें रोजाना करना चाहिए वो, वे कभी कभी करते है। अनुरोध है इस प्रयास को यूं ही न आंकिए। उन्हे भी बाजार देखना है। और भारत की गरीबी दिखाकर बाजार नहीं जोड़ा जा सकता। तो क्यों भारतीय माध्यमों पर मर चुके इस मुद्दे को वे दिखा रहे है।
जवाब। पत्रकारिता और सरोकार है जनाब।
Agricultural Problems Lead to Farmer Suicides in India
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International media = Indian Tamasha
What is mainstream media? Society and government reacts differently on issues covered by news sources. News is always, which attracts reaction. In India we generally amused on sting operation and the trivialized issues, mostly covered by media. In the process of maturity the Indian media seems more underdeveloped. But what exactly International media is all about. Iraq-America episode of democracy is always a truth for any media fellow. But how much fair the international names, who embedded the journalism, in the name of Country.
After little scrutinize the international media, we got some reality….for u…judge…and have some happiness that we are the same!
http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/discussion/2007/06/26/DI2007062600690.html
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After little scrutinize the international media, we got some reality….for u…judge…and have some happiness that we are the same!
http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/discussion/2007/06/26/DI2007062600690.html
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Saturday, June 23, 2007
Orkut for Good Cause
In a country of vibrancy, communication initiatives are always bliss. But ORKUT is always popular for bad reasons. We got this story, from which you find that social communication tool is also a reson to cheer up.....
Shaishab :United for a cause through Orkut
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Friday, June 22, 2007
Copycat Journalism!!!
We got this story from The Hoot. We are always worried for the plaigiarism in journalism. Copycat is a syndrome which always with journalism...but in the name of journalism it is a crime!
MediaYug
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Over the past four weeks, one enterprising reporter at MetroNow has regularly lifted reports from the Hindu's Delhi edition. MetroNow's selling line is, "the stories you want to hear, the way youwant to hear them". Well, apparently the paper thinks people want to hear stories the way they appear in the Hindu. Over the past few weeks, one enterprising reporter there, Neeraj Pathak, has cheerfully lifted, more or less wholesale, three reports from the Hindu's Delhi edition, all done by the same reporter, Smriti Kak Ramachandran. The new compact paper which is a joint venture between the Times of India and the Hindustan Times reflects the ethics of the Times ofIndia, whose publications plagiarise from time to time. We wonder what the Hindustan Times and its editor think of all this. If they are quietly acquiescing, it does not say much for the ethics of HT either.
On May 17, 2007 a story by Kak Ramachandran titled, "Power distribution companies want to set up power plants" appeared in theDelhi edition of the Hindu. Its opening paras were, Left to shoulder the responsibility of procuring power for the consumers, the Capital's power distribution companies have written to the Delhi Government seeking permission to set up their own power generation plants. Distribution company BSES is the latest to seek permission to set up a 1,400 MW gas-based plant. Its North Delhi counterpart, the North Delhi Power Limited (NDPL), has been awaiting the Government's nod for the past three years to set up a power generation plant in the city.
On May 21 2007, Pathak filed a story for his paper which began: Realising that only power distribution business will not fill their coffers, the Capital's power distribution companies have written to the Delhi Government seeking permission to set up their own power generation plants. His second para read, BSES is the latest to seek permission to set up a 1,400 MW gas-based plant in Delhi. Its North Delhi counterpart, the North Delhi Power Limited (NDPL), has been awaiting the Government's nod to set up a power generation plant in the city for the past three years. Note the purely cosmetic rearranging here and there? The six paras which follow are almost identical to the Hindu story.
On May 22, the Hindu carried a story by Smriti Kak Ramachandran titled "Focus on water recycling." It said that to check the misuse of potable water, the Delhi Jal Board is envisaging a policy that will insist on recycling of water by industrial and commercial establishments. On May 23, 07 young Pathak sprang into action, with a story titled "Believe it or not DJB says it is serious about water wastage" which said, surprise surprise, exactly the same thing. His story even quoted the same NGO on the issue.
On June 4, 2007 Ramachandran filed another story for her paper which was carried in the June 5 issue. It was titled, "Delhi, Haryana lock horns over release of water." Not to be left behind, Mr. Pathak came up with a story titled "Haryana releases water, not enough says Delhi." Except for the first para the entire story was a verbatim lift of the one in the Hindu. This appeared in MetroNow the next day, June 6, 2007.
The Hindu reporter should probably save him the trouble of waiting for her stories by just copying everything she files, to him. And may be the Hindu can regularise the arrangement by charging a syndication fee. Though it would need to be an arrangement which allows different byline to be slapped onto the story!
Courtesy: www.thehoot.org
MediaYug
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Over the past four weeks, one enterprising reporter at MetroNow has regularly lifted reports from the Hindu's Delhi edition. MetroNow's selling line is, "the stories you want to hear, the way youwant to hear them". Well, apparently the paper thinks people want to hear stories the way they appear in the Hindu. Over the past few weeks, one enterprising reporter there, Neeraj Pathak, has cheerfully lifted, more or less wholesale, three reports from the Hindu's Delhi edition, all done by the same reporter, Smriti Kak Ramachandran. The new compact paper which is a joint venture between the Times of India and the Hindustan Times reflects the ethics of the Times ofIndia, whose publications plagiarise from time to time. We wonder what the Hindustan Times and its editor think of all this. If they are quietly acquiescing, it does not say much for the ethics of HT either.
On May 17, 2007 a story by Kak Ramachandran titled, "Power distribution companies want to set up power plants" appeared in theDelhi edition of the Hindu. Its opening paras were, Left to shoulder the responsibility of procuring power for the consumers, the Capital's power distribution companies have written to the Delhi Government seeking permission to set up their own power generation plants. Distribution company BSES is the latest to seek permission to set up a 1,400 MW gas-based plant. Its North Delhi counterpart, the North Delhi Power Limited (NDPL), has been awaiting the Government's nod for the past three years to set up a power generation plant in the city.
On May 21 2007, Pathak filed a story for his paper which began: Realising that only power distribution business will not fill their coffers, the Capital's power distribution companies have written to the Delhi Government seeking permission to set up their own power generation plants. His second para read, BSES is the latest to seek permission to set up a 1,400 MW gas-based plant in Delhi. Its North Delhi counterpart, the North Delhi Power Limited (NDPL), has been awaiting the Government's nod to set up a power generation plant in the city for the past three years. Note the purely cosmetic rearranging here and there? The six paras which follow are almost identical to the Hindu story.
On May 22, the Hindu carried a story by Smriti Kak Ramachandran titled "Focus on water recycling." It said that to check the misuse of potable water, the Delhi Jal Board is envisaging a policy that will insist on recycling of water by industrial and commercial establishments. On May 23, 07 young Pathak sprang into action, with a story titled "Believe it or not DJB says it is serious about water wastage" which said, surprise surprise, exactly the same thing. His story even quoted the same NGO on the issue.
On June 4, 2007 Ramachandran filed another story for her paper which was carried in the June 5 issue. It was titled, "Delhi, Haryana lock horns over release of water." Not to be left behind, Mr. Pathak came up with a story titled "Haryana releases water, not enough says Delhi." Except for the first para the entire story was a verbatim lift of the one in the Hindu. This appeared in MetroNow the next day, June 6, 2007.
The Hindu reporter should probably save him the trouble of waiting for her stories by just copying everything she files, to him. And may be the Hindu can regularise the arrangement by charging a syndication fee. Though it would need to be an arrangement which allows different byline to be slapped onto the story!
Courtesy: www.thehoot.org
Tuesday, June 19, 2007
News with face, or face with News
News with a face...surely attracts you. Editorial seasoned journalist gives you a pleasure, and newly make-up-ed toddlers a jinx.
Well we got a good dicscussion on this issue on international panaroma..
Read and become part of it...
Face of the news: How do beauty standards affect TV journalism?
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Monday, June 18, 2007
Hate me Love me , but you cant ignore ‘Me’-dia
We got a good article on the new hate trend for media. This didnt show that we hate media. We are positive that one day you have a media, that care for your future and summon the wrong. Well, till then enjoy this new hating loving....
Media Yug
Media bashing; favourite pastime of critics
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Media Yug
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Wednesday, June 13, 2007
आपकी जरूरत इस संस्थान को अब नहीं है। धन्यवाद।
मीडिया नाइंसाफी के खिलाफ है। मीडिया हक मारने वालों को चैन से नहीं जीने देगा। मीडिया अधिकारहीन को अधिकार दिलाएगा। मीडिया चौथा स्तंभ है। लोकतंत्र का। लेकिन इसी मीडिया में काम करने वालों के कोई अधिकार नहीं है। एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूर की तरह। ये एक ऐसी हकीकत है जिससे हर मीडियाकर्मी सरोकार रखता है। थोड़ा कम, थोड़ा ज्यादा। एक दिन अचानक आपको बुलाकर कहा जाता है कि आपकी जरूरत हमारे समाचार चैनल में नहीं रह गई है। या आपकी भूमिका में बदलाव करके हर दिन गलतियों को ढूंढा जाता है और आपसे नमस्ते कर ली जाती है। ये महज शब्द नहीं है। सचाई है।
एक चैनल है। जो अब समाचार में पूरी तरह आने वाला है। चैनल के इस नए रूप के लिए लोग चाहिए। जो पहले से है, वे खुश थे कि नए रोल में वे भी हिस्सेदार होंगे। लेकिन उन्हे बुलाकर सप्रेम कहा जाता है कि वे पारिवारिक कारणों से इस्तीफा दे दें। पिछले दिनों में पचासों लोग सड़क पर आ गए। वे सारे पत्रकार है। लेकिन उन्हे नौकरी करनी थी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। और आगे भी होता रहेगा। याद होगा आपको दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में एक मशहूर अखबार के आफिस के आगे कुछ लोग अपने निकाले जाने पर कई महीनो तक धरना देते रहे। वे शायद आज कहीं नौकरी कर रहे होंगे।
टीवी में अधिकारों की लडा़ई लड़ने का हौसला कम होता है। तभी तो दस एक साल से टीवी समाचार चैनलों ने केवल दो न्याय के किस्से पेश किए है। एक जेसिका दूसरा प्रियदर्शिनी मट्टू। वो भी एसएमएस से सहयोग देने की कमाई के साथ।
लोगों का बिना नोटिस, सूचना निकाला जाना मीडिया में आम हो चला है। लेकिन देखने सुनने वाला कोई नहीं है। सबको नौकरी करनी है। सो कर रहे हैं। देखा जाए तो शहर में रहकर चुनावी करना मुश्किल है। जीना भी तो है। लेकिन क्या इससे पत्रकारिता को कोई लाभ होगा। जो व्यक्ति अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ पा रहा है,वो कैसे समाज के अंतिम आदमी की लड़ेगा।
आज एक मिटते चैनल के कुछ लोग सड़क पर है। वे नई नौकरी ढूंढ रहे है। वे मालिक या किसी से नाराज नहीं है। मान चुके है कि यहीं सत्य है। मीडिया का सत्य।
मैने देखा है कि समाज में एक ओर बर्दाश्त करने की काबिलियत खत्म हो रही है, तो एक ओर वो आपको इतना कमजोर कर दे रही है कि आप सिसक तो सकते है, रो नहीं।
यकीन मानिए। आप कहीं न कहीं जिम्मेदार है। खुद के निर्णयों के लिए। जिस तरह रनडाउन पर बैठकर खुद लगाई गई खबरों के लिए।
लोकतंत्र में एक आदमी के अधिकार क्या होते है, ये पत्रकार से बेहतर कौन जानता है। ये वकील भी जानता है, सो उसे कोई प्रताड़ित नहीं करता। ये बैंक का कर्मचारी भी जानता है, सो उससे आप बैंक में नहीं लड़ सकते। ये आपकी कामवाली भी जानती है, सो जो वो मांगती है वो आप देते है। ग्लानि के साथ।
पत्रकार मर रहा है। ये सच नया नहीं है। रोज नौकरी करके वो समझौतावादी हो चला है। एक ऐसा समझौता जो वो एक मकान, एक गाड़ी, एक छुट्टी के लिए करता है। और बदले में उसे निजाम बदलने पर मिलती है एक नोटिस। आपकी जरूरत इस संस्थान को अब नहीं है। धन्यवाद।
सूचक
soochak@gmail.com
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एक चैनल है। जो अब समाचार में पूरी तरह आने वाला है। चैनल के इस नए रूप के लिए लोग चाहिए। जो पहले से है, वे खुश थे कि नए रोल में वे भी हिस्सेदार होंगे। लेकिन उन्हे बुलाकर सप्रेम कहा जाता है कि वे पारिवारिक कारणों से इस्तीफा दे दें। पिछले दिनों में पचासों लोग सड़क पर आ गए। वे सारे पत्रकार है। लेकिन उन्हे नौकरी करनी थी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। और आगे भी होता रहेगा। याद होगा आपको दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में एक मशहूर अखबार के आफिस के आगे कुछ लोग अपने निकाले जाने पर कई महीनो तक धरना देते रहे। वे शायद आज कहीं नौकरी कर रहे होंगे।
टीवी में अधिकारों की लडा़ई लड़ने का हौसला कम होता है। तभी तो दस एक साल से टीवी समाचार चैनलों ने केवल दो न्याय के किस्से पेश किए है। एक जेसिका दूसरा प्रियदर्शिनी मट्टू। वो भी एसएमएस से सहयोग देने की कमाई के साथ।
लोगों का बिना नोटिस, सूचना निकाला जाना मीडिया में आम हो चला है। लेकिन देखने सुनने वाला कोई नहीं है। सबको नौकरी करनी है। सो कर रहे हैं। देखा जाए तो शहर में रहकर चुनावी करना मुश्किल है। जीना भी तो है। लेकिन क्या इससे पत्रकारिता को कोई लाभ होगा। जो व्यक्ति अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ पा रहा है,वो कैसे समाज के अंतिम आदमी की लड़ेगा।
आज एक मिटते चैनल के कुछ लोग सड़क पर है। वे नई नौकरी ढूंढ रहे है। वे मालिक या किसी से नाराज नहीं है। मान चुके है कि यहीं सत्य है। मीडिया का सत्य।
मैने देखा है कि समाज में एक ओर बर्दाश्त करने की काबिलियत खत्म हो रही है, तो एक ओर वो आपको इतना कमजोर कर दे रही है कि आप सिसक तो सकते है, रो नहीं।
यकीन मानिए। आप कहीं न कहीं जिम्मेदार है। खुद के निर्णयों के लिए। जिस तरह रनडाउन पर बैठकर खुद लगाई गई खबरों के लिए।
लोकतंत्र में एक आदमी के अधिकार क्या होते है, ये पत्रकार से बेहतर कौन जानता है। ये वकील भी जानता है, सो उसे कोई प्रताड़ित नहीं करता। ये बैंक का कर्मचारी भी जानता है, सो उससे आप बैंक में नहीं लड़ सकते। ये आपकी कामवाली भी जानती है, सो जो वो मांगती है वो आप देते है। ग्लानि के साथ।
पत्रकार मर रहा है। ये सच नया नहीं है। रोज नौकरी करके वो समझौतावादी हो चला है। एक ऐसा समझौता जो वो एक मकान, एक गाड़ी, एक छुट्टी के लिए करता है। और बदले में उसे निजाम बदलने पर मिलती है एक नोटिस। आपकी जरूरत इस संस्थान को अब नहीं है। धन्यवाद।
सूचक
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Tuesday, June 12, 2007
A MUST READ......
We got this mail. And hope the sender too feel's like the millions of viewer feel, everyday, every hour and every minute. Why the TV Channels are portraying trivialize issues in large. We feel that it is a big mind gap. A gap between the viewer and the editors.
Well read it, it may hurt you, but sure it is neccessary to raise issues.
----------------------------------------------------------
Shame on Indian Media
Dear Editors of HT, TOI, IndianExpress and The Hindu, I got the mail below from a friend of mine and following the unwritten code of conduct, I am forwarding it to my friends but all efforts of people who have been forwarding this mail would go waste if this mail doesn't reach YOU.......
Something to think about..!!
Shame on Indian Media??? Really what a shame...
By the time u guys read this news, the body of Major Manish Pitambare, who was shot dead at Anantnag, would have been cremated with full military honors.
On Tuesday, this news swept across all the news channels 'Sanjay Dutt relieved by court'. 'Sirf Munna not a bhai' '13 saal ka vanvaas khatam' 'although found guilty for possession of armory, Sanjay can breath sigh of relief as all the TADA charges against him are withdrawn' Then many personalities like Salman Khan said 'He is a good person. We knew he will come out clean'. Mr Big B said "Dutt's family and our family have relations for years he's a good kid. He is like elder brother to Abhishek". His sister Priya Dutt said "we can sleep well tonight. It's a great relief"
In other news, Parliament was mad at Indian team for performing bad; Greg Chappell said something; Shah Rukh Khan replaces Amitabh in KBC and other such stuff. But most of the emphasis was given on Sanjay Dutt's "phoenix like" comeback from the ashes of terrorist charges. Surfing through the channels, one news on BBC startled me. It read "Hisbul Mujahidin's most wanted terrorist 'Sohel Faisal' killed in Anantnag , India . Indian Major leading the operation lost his life in the process. Four others are injured.
It was past midnight , I started visiting the stupid Indian channels, but Sanjay Dutt was still ruling. They were telling how Sanjay pleaded to the court saying 'I'm the sole bread earner for my family', 'I have a daughter who is studying in US' and so on. Then they showed how Sanjay was not wearing his lucky blue shirt while he was hearing the verdict and also how he went to every temple and prayed for the last few months. A suspect in Mumbai bomb blasts, convicted under armory act...was being transformed into a hero.
Sure Sanjay Dutt has a daughter; Sure he did not do any terrorist activity. Possessing an AK47 is considered too elementary in terrorist community and also one who possesses an AK47 has a right to possess a pistol so that again is not such a big crime; Sure Sanjay Dutt went to all the temples;
Sure he did a lot of Gandhigiri but then........ ...
Major Manish H Pitambare got the information from his sources about the terrorists' whereabouts. Wasting no time he attacked the camp, killed Hisbul Mujahidin's supremo and in the process lost his life to the bullets fired from an AK47. He is survived by a wife and daughter (just like Sanjay Dutt) who's only 18 months old.
Major Manish never said 'I have a daughter' before he took the decision to attack the terrorists in the darkest of nights. He never thought about having a family and he being the bread earner. No news channel covered this since they were too busy hyping a former drug addict, a suspect who's linked to bomb blasts which killed hundreds. Their aim was to show how he defied the TADA charges and they were so successful that his conviction in possession of armory had no meaning. They also concluded that his parents in heaven must be happy and proud of him.
Parents of Major Manish are still living and they have to live rest of their lives without their beloved son. His daughter won't ever see her daddy again.
So guys, please forward this message around so that the media knows which news to give importance, as it is a shame for us since this Army Major's death news was given by a foreign TV channel!!!
If you believe in it, don't feel shy in forwarding it.
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Something to think about..!!
Shame on Indian Media??? Really what a shame...
By the time u guys read this news, the body of Major Manish Pitambare, who was shot dead at Anantnag, would have been cremated with full military honors.
On Tuesday, this news swept across all the news channels 'Sanjay Dutt relieved by court'. 'Sirf Munna not a bhai' '13 saal ka vanvaas khatam' 'although found guilty for possession of armory, Sanjay can breath sigh of relief as all the TADA charges against him are withdrawn' Then many personalities like Salman Khan said 'He is a good person. We knew he will come out clean'. Mr Big B said "Dutt's family and our family have relations for years he's a good kid. He is like elder brother to Abhishek". His sister Priya Dutt said "we can sleep well tonight. It's a great relief"
In other news, Parliament was mad at Indian team for performing bad; Greg Chappell said something; Shah Rukh Khan replaces Amitabh in KBC and other such stuff. But most of the emphasis was given on Sanjay Dutt's "phoenix like" comeback from the ashes of terrorist charges. Surfing through the channels, one news on BBC startled me. It read "Hisbul Mujahidin's most wanted terrorist 'Sohel Faisal' killed in Anantnag , India . Indian Major leading the operation lost his life in the process. Four others are injured.
It was past midnight , I started visiting the stupid Indian channels, but Sanjay Dutt was still ruling. They were telling how Sanjay pleaded to the court saying 'I'm the sole bread earner for my family', 'I have a daughter who is studying in US' and so on. Then they showed how Sanjay was not wearing his lucky blue shirt while he was hearing the verdict and also how he went to every temple and prayed for the last few months. A suspect in Mumbai bomb blasts, convicted under armory act...was being transformed into a hero.
Sure Sanjay Dutt has a daughter; Sure he did not do any terrorist activity. Possessing an AK47 is considered too elementary in terrorist community and also one who possesses an AK47 has a right to possess a pistol so that again is not such a big crime; Sure Sanjay Dutt went to all the temples;
Sure he did a lot of Gandhigiri but then........ ...
Major Manish H Pitambare got the information from his sources about the terrorists' whereabouts. Wasting no time he attacked the camp, killed Hisbul Mujahidin's supremo and in the process lost his life to the bullets fired from an AK47. He is survived by a wife and daughter (just like Sanjay Dutt) who's only 18 months old.
Major Manish never said 'I have a daughter' before he took the decision to attack the terrorists in the darkest of nights. He never thought about having a family and he being the bread earner. No news channel covered this since they were too busy hyping a former drug addict, a suspect who's linked to bomb blasts which killed hundreds. Their aim was to show how he defied the TADA charges and they were so successful that his conviction in possession of armory had no meaning. They also concluded that his parents in heaven must be happy and proud of him.
Parents of Major Manish are still living and they have to live rest of their lives without their beloved son. His daughter won't ever see her daddy again.
So guys, please forward this message around so that the media knows which news to give importance, as it is a shame for us since this Army Major's death news was given by a foreign TV channel!!!
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Wednesday, June 06, 2007
गवाह का शिकार चैनल
एक चैनल। एक गवाह। और सैकडों सवाल। ये सवाल पैदा हुए है एक गठजोड़ के बारे में। इस भयानक सच ने देश की न्यायिक व्यवस्था की सचाई खोली है। गवाह अपने बयान बदलते रहते है। सवाल उनकी सिक्योरिटी और उनके हित का रहा है। अदालतें मजबूर होकर फैसला देती रही है। सवाल उनके सामने पेश होने वाले सबूतों का है। टीवी को फैसलों की बहसें दिखाना अच्छा लगता है। बचाव और अभियोजन दोनों अगर मिल जाएं, तो अभियुक्त के पास बच निकलने के सारे औजार होते है। टीवी को ये पता है, बल्कि समाज को भी पता है। लेकिन गवाह की मदद के बिना ये संभव नहीं है। और गवाह की मंशा सबसे मायने रखती है। गवाह का खेल।
यहीं से बीएमडब्ल्यू मामले में सुनील कुलकर्णी की भूमिका पर सवाल खड़े होते है। कुलकर्णी एक ऐसा गवाह, जो 1999 की उस रात से संदेह के घेरे में था। वो दिल्ली में था भी या नहीं, वो बार बार दिल्ली में किसके खर्चे पर रूकता और उसे शायद इन्ही वजहों से उसे गवाहों की फेहरिस्त से हटाया गया। तो क्या बचे एकमात्र गवाह सुनील कुलकर्णी ने मीडिया के लालच को अपने हित में भुनाया है। क्या वो सब कुछ समझदारी से कर रहा था। चैनल की रॉ फुटेज में उसकी डिफेंस लायर आर के आनंद से बातचीत का लहजा बताता है कि वो ये तय कर चुका था कि उसे बिकना है, या वो शुरू से ही बिका था। उसने स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर आई यू खान से जो बातें की उससे कुछ साफ नहीं होता। उसने आनंद से हवाईअड्डे पर जो कहा, वो ये साफ करता है कि वो अपनी गवाही की बोली लगा रहा था। चैनल ने इस खुलासे से बड़ी सचाई रखी। बाद में भी चैनल ने ये बताया कि वो कुलकर्णी की पिछली करनियों के जिम्मेदार नहीं है। लेकिन क्या चैनल को कुलकर्णी के पिछले रिकार्ड नहीं परेशान कर रहे थे। स्टिंग के जरिए जो तूफान मचा है, और जिम्मेदारों को जो भी सजा मिली, वो कम है।
देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने वाला टीवी आज कही न कही गवाह के बुने जाल में शिकार बना है। इसे कम कमतर करके नहीं आंक सकते। हम मानते है कि खुलासे लोकतंत्र में विश्वास की नींव को हिलाकर सच के प्रति सकारात्मक माहौल बनाते है। लेकिन किरदारों को लेते वक्त उनका जायजा लेना इससे और जरूरी हो जाता है।
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यहीं से बीएमडब्ल्यू मामले में सुनील कुलकर्णी की भूमिका पर सवाल खड़े होते है। कुलकर्णी एक ऐसा गवाह, जो 1999 की उस रात से संदेह के घेरे में था। वो दिल्ली में था भी या नहीं, वो बार बार दिल्ली में किसके खर्चे पर रूकता और उसे शायद इन्ही वजहों से उसे गवाहों की फेहरिस्त से हटाया गया। तो क्या बचे एकमात्र गवाह सुनील कुलकर्णी ने मीडिया के लालच को अपने हित में भुनाया है। क्या वो सब कुछ समझदारी से कर रहा था। चैनल की रॉ फुटेज में उसकी डिफेंस लायर आर के आनंद से बातचीत का लहजा बताता है कि वो ये तय कर चुका था कि उसे बिकना है, या वो शुरू से ही बिका था। उसने स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर आई यू खान से जो बातें की उससे कुछ साफ नहीं होता। उसने आनंद से हवाईअड्डे पर जो कहा, वो ये साफ करता है कि वो अपनी गवाही की बोली लगा रहा था। चैनल ने इस खुलासे से बड़ी सचाई रखी। बाद में भी चैनल ने ये बताया कि वो कुलकर्णी की पिछली करनियों के जिम्मेदार नहीं है। लेकिन क्या चैनल को कुलकर्णी के पिछले रिकार्ड नहीं परेशान कर रहे थे। स्टिंग के जरिए जो तूफान मचा है, और जिम्मेदारों को जो भी सजा मिली, वो कम है।
देश की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने वाला टीवी आज कही न कही गवाह के बुने जाल में शिकार बना है। इसे कम कमतर करके नहीं आंक सकते। हम मानते है कि खुलासे लोकतंत्र में विश्वास की नींव को हिलाकर सच के प्रति सकारात्मक माहौल बनाते है। लेकिन किरदारों को लेते वक्त उनका जायजा लेना इससे और जरूरी हो जाता है।
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Monday, June 04, 2007
Its all about News(Never entertain worthy story)
The cut throat competition of Hindi News channels is getting bitter day by day. In this all the content become the goat. What to show, what are the limits and what about ethics....
Mediayug find a good article on the current 'Mahabharat'
Sex, sleaze spell boom for Hindi channels
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