एक फ्रेज है वर्ल्ड आफ माउथ। इसका अर्थ है मुंहजबानी। यानि एक खबर की मंजिल उसे कई जबानों से मिलती जाती है। जैसे एक बात जो पत्रकारिता में हर कोई कभी न कभी कहता सुनता मिलता है। कि राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि सौ रूपए का दस पैसा ही वहां तक पहुंचता है जहां के लिए वो सौ रिलीज हुआ है।
आज के जमाने में वर्ल्ड आफ माउथ की अहमियत है। समय नहीं है। पढ़ने की रूचियां कम हो रही है। देखने सुनने के लिए पूरा संसार टीवी पर है। लेकिन काम से बचे वक्त में देखना भी तय हो चुका है। सबकुछ नहीं देखा जा सकता है। तो एक शहर में ऐसा क्या बचा है जो अनोखा है।
अनोखा है वार्ताफलक। वार्ता यानि बातचीत, फलक यानि वो स्थान जहां कुछ देखा जा सके। या मैं थोड़ा सा अर्थ में भ्रमित हूं।
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पूना या पुणे में आज भी हर चौराहे हर गली पर आपके एक वार्ताफलक टंगा या रखा दिखेगा। ये अनोखा इस अंदाज में है कि इसमें आपको सबकुछ लिखा मिल सकता है। खबर, असर, नैतिकता, धर्म, अधर्म, टिप्पणी आदि।
पुणे में ये क्यो जीवित बचा है ये सवाल गौर करने लायक है। ये अपने आप में सामुदायिक भावना का प्रतीक है। और एक तरह की जीवंत पत्रकारिता का संबल।
सराय के जरिए एक शख्स इस विरासत पर शोधरत है। हमें उम्मीद है कि जो भी नतीजे आएंगे वे समाज की इस विधा को आगे बढ़ाने में मददगार ही होंगे।
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1 comment:
साथ ही यह भी पता चलता है कि पुणे ज़िन्दा शहर है। नहीं तो बाक़ी शहर भाग-दौड़ की मशीन हो चुके हैं।
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