भागो भूत आया। अरे भई ये भूत अमिताभ बच्चन का है। और वो भी कैडबरी चाकलेट के प्रचार में। क्या टीवी के भूत अब तीस सेंकेंड वाले प्रचारों में आ गए है। स्वाद के दीवाने ही जाने। बहरहाल भारतीय टीवी पर्दे पर दिखने वाले प्रचारो की किस्में बांचने वाले आजकल तकनीकी, अंधविश्वास, साहस और कामुकता के बीच डोल रहे है। मिरिंडा के प्रचार में जाएद खान एनिमेटड कैरेक्टर में बदल जाते हैं तो थम्पअप के एड में अक्षय कुमार किसी स्पाइडर मैन को भी मात देते है। वहीं अमूल माचो ने तो कामुकता को धोबी घाट पर ही धो डाला। एक धोने वाले साबुन और डिटर्जेंट ने सबको कन्फ्यूज ही कर दिया। रिन अब सर्फ एक्सेल हो गया है। मतलब। मतलब की उन्नीस रूपए का साबुन। कपड़े धोने के लिए।
टीवी पर अब कार के प्रचारों ने काफी जगह घेरी है। तमाम ब्रांड अपनी अपनी खासियतों से लैस कार को टीवी पर ब्रेक लगा रहे है। दूसरा स्पेस घेरा है होम अप्लाएंसस ने। घर में हर चीज केवल एक शब्द से। ईएमआई।
पंखों के प्रचारों मे आजकल बेतहाशा बढ़ोतरी देखी जा रही है। मानो पंखे से तनाव, पंखे से यौवन और पंखे से ही ताजगी आती है। आती है जनाब पर उस ग्रे मार्केट का क्या करिएगा, जो आज ब्रांडेड की आधी कीमत में भी हवा देता है।
वैसै एपेनलिबे के शेरो शायरी वाला प्रचार देखकर मन थोड़ा मीठा जरूर हो जाता है। वहीं दांतो की चमक से रास्तो को गुलजार करने वाला प्रचार अनोखा और बदहजमी जैसा दिखता है।
हवाई यात्रा के अनुभवों से रूबरू जनता को लुभावने एयर होस्टसों को तैयार करने वाली कंपनियों के एड जरूर भाते होंगे। कोई हवा में उड़ना चाहता था तो कोई इसे अपनी चाल से ही ये जता देता है कि वो खास है।
खास अंदाज में पानी की छींटे रंगीन अंदाज में टपका टपका कर रिलायंस की बातों के रंग एक गीला गीला सा अनुभव पैदा करते है। बातचीत में रंगीनी तो समाज में कुछ और ही मानी जाती है वैसै। प्रेमियों को रात भर बात करने की आजादी का ख्याल मोबाइल कंपनियों ने सदैव रखा है भई। चक दे फट्टे और मोबाइल की चोर को सुविधा देने वाले प्रचार मोबाइल की अहमियत बता रहे है।
कुछ प्रचारों के साथ ब्रांड इमेज जुड़ी होती है।जैसे मयूर और च्यवनप्राश के सारे एड। मयूर का चेहरा तो सलमान खान हो गए है तो अमिकाब बनाम शाहरूख की लड़ाई च्यवनप्राश और कुछ सूटिंग शर्टिग वाले विज्ञापनों में देखी जा सकती है।
टीवी को दिखाने की एक और लड़ाई जारी है। डीटीएच के जरिए। टाटा स्काई लगवाए या डिश टीवी। डायरेक्ट प्लस, डीडी वाला भई, को तो कोई पूछ ही नहीं रहा है।
टीवी से कम्पूटर के खरीदार भी खूब बन रहे है। लिनेवो को आपको खोने के बाद भी पहचानने का दावा करता है। और काम्पैक का दुकानदारी शाहरूख बढ़ा ही रहे थे।
लेकिन जिस सेक्टर ने सबसे ज्यादा टीवी को घेर है वो घर का मामला है। घर बनाना है। रिएल स्टेट में तो इतने नाम आ गए है कि यहां उन्हे गिना पाना आसान नहीं है। रेडियों में तो वे हर गाने के आजू बाजू खड़े है।
तो क्या हम सूचना के बाढ़ में तैर रहे है। हमारे आस पास की इमारतों नें खिड़किया कम नजर आने लगी है। प्रचार के बोर्ड ज्यादा हो गए है। आकाश के बीच में एक बड़ा सा आउटडोर एजवर्टाइजिंग का बिलबोर्ड टंगा है। जो बताता है कि हम बनाए आपका जीवन सुंदर।
दरअसल पेपर वालों से लेकर टीवी-रेडियो-इंटरनेट वालों तक सबको रोजी रोटी देने वाले विज्ञापन आज उत्पाद की हर दुकानदारी में लगे है। आपकी नजर में बने रहना ही उनकी जरूरत है। और इसके लिए आपको चौकन्ना करना इनकी जिम्मेदारी है। आने वाले दिनों में आपके मोबइल पर इनका कब्जा होना है। और फिर आपकी निजी जिंदगी में ये हर पल कहते रहेंगे कि वेअरएवर यू गो, आवर नेटवर्क फालोज।
Soochak
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Monday, July 02, 2007
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