Monday, July 30, 2007

पंद्रह लाख का नम्बर और मीडिया

ये मेरा शौक है। मैं पूरी दुनिया में फेमस होना चाहता था। लोग मुझे फोन कर रहे है। मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया। और इस तरह एक व्यक्ति मीडिया की बदौलत हो जाता है मशहूर। एक नम्बर। जिसमें जुड़े है सात शून्य। इसे खरीदा गया पंद्रह लाख में। और खरीदार बन जाता है खबर।

खबर। हर उत्पाद की खबर। एक सनक की खबर। एक शौक की खबर। क्या यहीं खबर है। किसी के पास पैसे हो, तो वो कुछ भी फालतू करें। और मीडिया इसे पेश करके समाज में एक आर्टिफिशियल एस्पिरेशन पैदा करें।

आर्टिफिशियल एस्पिरेशन। जी हां। जिस शौक ने एक युवक को पंद्रह लाख खर्चने पर मजबूर किया। वो शौक आज हर शहर में लोगों की जुबान पर है। खरीदार ने एक दिन की शोहरत बटोर ली है। पर जिसे सचमें फायदा होगा वो है फोन कंपनी।

समाज में इस खबर से जो असर गया है, वो आने वाले दिनों में युवको, पैसे वालों और सपनों में जीते मध्यमवर्गीय लोगों को लोलुप करेगा, कि वे ऐसे शौक को पूरा करें। यानि अब एक नया तरह का लालच पैदा होगा। जो सही गलत नहीं पहचानेगा।

मीडिया को इस खबर में जो दिखा वो क्या था, ये समझना मुश्किल नहीं। पहला कि शौक और पैसे के बीच जो रिश्ता है, वो साफ दिखा। दूसरा एक व्यक्ति खबर बना सकता है। वो सक्षम है तो। एक अनोखा कारनामा खबर बन सकती है। एक शौक की हद कुछ नहीं। और हर हद के बाद एक खबर छुपी है।

जाहिर है मीडिया, अखबार से लेकर टीवी तक, अब खबरों के असर को देखना समझना छोड़ चुके है। इसी वजह से वो खरीदार की लालसा को बढ़ाते रहते है। किसी भी अखबार को ले लीजिए। हर हफ्ते वो पर्यटन, आवास, वाहन और शौक से जुड़ी खबरों को रंगीन साचे ढांचे में पेश करता है। टीवी इससे एक कदम आगे है। वो रोजाना इस रंगीनी का एक डोज देता है। उसके ग्राहक तय है।

समाज में जो असर देखा जाता है, वो व्यवहार और बदलाव दोनों तौर है। किसी के हाथ में मोबाईल है तो किसी के मुंह में सिगरेट। ये जरूरत से ज्यादा स्टेटमेंट है।

आर्टिफिशियल एस्पिरेशन यानि छलावे वाली चाहतें पैदा करने वाला मीडिया को इन खबरों से जो बाजार मूल्य मिलता है, वो उसके पीछे भागता है। पर इन खबरों के असर से समाज में जो भागमभाग चल रही है, वो केवल अवसाद और पलायन की ओर ले जाने वाली है।

किसी भी जनसंचार माध्यम से ये अपेक्षा कि वो समाज को एक दिशा देगा, कोई गैरजरूरी मांग नहीं है। क्या टीवी इस खबर के जनक को हतोत्साहित नहीं कर सकती, या क्या उसे इस खबर को दिखाने से परहेज नहीं करना चाहिए। अखबार के लिए भी रोचकता क्या मानक है।

किसी भी उत्पाद के लिए ग्राहक की सोच तो समझना जरूरी होता है। भारतीय शहरी मानस अब मोल तोल से ऊपर उठकर शौक और स्टेटमेंट में जीने लगा है। आने वाले दिनों में ईगो की जगह शौक ले लेगा। और समाज में लड़ाई शौक के लिए होगी। इस दौरान मीडिया के लिए शौक होगा हर सनक और अनोखी खबर। इंतजार है किसी रईस के घर के शानोशौकत की खबर का। या किसी के नायाब शौक की हद का।

Soochak
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