Monday, July 09, 2007
मीडियायुग खुलासा : ताज के नाम पर लुटा देश
हम लुट गए। ताज की मोहब्बत में। किसे दोष दे सकते है। बीते दिनों जिस तरह से आपने देश प्रेम और ताज प्रेम की भावना का सम्मान करते हुए करोड़ो वोट एसएसमएस और इंटरनेट के जरिए दिए उसी ने ताज को आज सात अजूबों में खड़ा किया है।
ताज को सात अजूबों में मानना उनकी मजबूरी और फायदा रहा जिन्होने ये पूरा जाल बुना था। जाल। जी हां। एक स्विस व्यापारी। उनका व्यापार। पूरी दुनिया। एसएमएस का पैसा। और सात अजूबे।
बर्नार्ड वेबर नाम के स्विस व्यवसायी ने न्यू ओपेन वर्ल्ड कारपोरेशन के जरिए जो तमाशा फैलाया उससे यूनेस्को तक को कोई सरोकार नहीं है। यूनेस्को ही विश्व धरोहरों की देख रेख के लिए वैश्विक उत्तरदायी मानी जाती है। बेवर ने अपने कारपोरेशन में यूनेस्को के एक पूर्व निदेशक को लिया, नाम फेडेरिको मेयर। और अपने धनकमाऊ प्रोजेक्ट को दी वैश्विक विश्वसनीयता। यानि एक निजी कंपनी ने ले लिया दुनिया को नए सात अजूबे देने का ठेका।
अब बात भारत में ठगे जाने की एक बानगी। आईएमसीएल नाम की एक कंपनी के पास थे वो राइट्स, जो कि आपके द्वारा किए जाने वाले हर एसएमएस पर कमा रहे थे। और इस कमाई का हिस्सा जा रह था, सरकार को, टेलीफोन(एयरटेल, हच, आईडिया, बीएसएनएल) सेवा प्रदान करने वाली कंपनियो को और वेबर को।
सबसे बड़ी बात जो गौर करने लायक थी कि एक व्यक्ति जितनी बार चाहे उतनी बार एसएमएस करके वोट कर सकता था। यानि आपके हर बार के राष्ट्रप्रेम की कीमत आप चुका रहे थे।
मिस्त्र में इसे लेकर काफी हो हल्ला मचा। सो इस समझदार व्यवसायी ने मिस्त्र के पिरामिडो को दे दी "हानररी न्यू सेवन वंडर्स कैंडिडेट" की उपाधि। मिस्त्र वालों को इस बात का डर था कि वे कही इस दौड़ में लिस्ट से गायब न हो जाए।
हर देश के लोगों ने अपनी पहचान को बरकरार रखने के लिए दस करो़ड़ के करीब वोट डाले। यानि अगर एक अनुमान भी लगाएं, तो तीस करोड़ रूपयों में से सबने अपना अपना हिस्सा खाया।
तो किसको दोष दें। जाहिर है मीडिया को। रातों दिन पेपरों, रेडियों और अखबारों ने चीख चीख कर ये कहा कि बस दो दिन, छह धण्टे बचे है। ताज को सरताज बनाने में। सारे देश को भी बिना किसी मेहनत के वोट करना था। सो तीन रूपए देने में किसी ने हर्ज नहीं जताया। लेकिन हमारे हित की बांचने वाले पत्रकार कहां थे। क्या ये कर्तव्य नहीं बनता था कि अखबार, टीवी और रेडियो वाले ये जांचे कि जिस विरासत को हमने बिना किसी वोट के सात अजूबों में माना था, उसके लिए बिना किसी प्रामाणिक संस्था के वोट की ये कारस्तानी को उजागर करे।
सारी पत्रकारिता किसी खुलासे के ईर्द गिर्द करने वाले टीवी चैनल और आम आदमी की खबरों को परोसने वाले अखबार क्यो सोते रह गए। अब क्या बचा है। खुश होना चाहिए कि नासमझ जनता ने अपनी देश भावना से लाज बचाई। वरना अगर ताज न चुना जाता तो क्या होता।
जाहिर है बाजार और नई तकनीकी के साथ किसी भी साजिश को बड़ी ही खूबसूरती से लूटने का औजार बनाया जा सकता है। मुझे ये विदेशी डायरेक्ट मार्केंटिंग के जमाने से चुभ रहा है। और आज इसकी चुभन और बढ़ गई है।
Soocak
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3 comments:
बहुत बढिया व सटीक लिखा है।
क्या बात है. मजा आ गया.
असली किस्सा तो पैसे वाला है. जय हो . जय हो . जय हो.
अरे यह आईएमसीएल तो भास्कर ग्रुप की कंपनी है.
तभी मैं कहूं कि भाष्कर वाले इतना ताज प्रेम क्यों दिखा रहे हैं.
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