Thursday, July 12, 2007

एक सचाई: कैसे मिले मीडिया में नौकरी - भाग दो

दूसरे पड़ाव के पहले

आप जब अपने शहर से चलते है तो किस्मत कहें या कर्म, आपको कुछ लोगों के नाम और संस्थान पता होते है। ये बात आप भी आम आदमियों की तरह जानते है कि फला किस चैनल में है। यानि आप जानते है जिसे हर कोई जानता है। कभी कभी आप किसी माध्यम से जान जाते है कि नौकरी देने वाली डिपार्टमेंट होता है एचआर। और इस समय फलां पत्रकारिता संस्थान की एचआर के हेड हैं फलां।

तीसरा पड़ाव

हर दिन गुजरता जाता है। आपकी सीवी एक गार्ड से दूसरे गार्ड के पास जाती जाती है। और आप को अखरने लगता है कि आपके पत्रकार को कोई समझ क्यूं नहीं पाता। इसी मशक्कत के दौरान किसी न किसी दिन आपको किसी बड़े संस्थान का कोई बड़ा चेहरा आते जाते मिल जाता है। आपकी खुशी का ठिकाना नहीं होता। आप उससे चलते चलते या सिगरेट के कश लगाते किसी बड़े पत्रकार को ये समझाते है कि आप ही हैं भविष्य के पत्रकार। वो कश जल्दी जल्दी लेने लगता है। और अंत में अपने नाम की एक ईमेल आईडी आपको देता है। सीवी भेज देना, देखते है। आप किस्मती हुए तो आपको वो अपना मोबाइल नम्बर भी दे देता है। आप भागे भागे किसी साइबर कैफे से अपनी सीवी कुछ सुधार कर उसे भेजते है। थोड़ी देर इंतजार करते है। फिर हिम्मत जुटाकर एसएमएस करते है। या आपमें पत्रकार है तो फोन ही कर देते है। फोन नहीं उठाया जाता है। या उठता है तो परिचय समझने के बाद वो कहता है देख लेंगें। एक हफ्ते बाद फोन करना।

एक हफ्ते बाद

ये बीचे के दिन आपकी बेकरारी के सबसे बड़े लम्हे होते है। आप बेसब्री से हर दिन को गुजारते है। घर पर फोन पर आप बताते है कि किस तरह आप फलां से मिल आए है। आपने उससे बात भी की और आपको उसने एक हफ्ते का वक्त भी दिया है। एक हफ्ता। बीत जाता है। आप सुबह सुबह फोन करते है। कई बार करने के बाद फोन उठता है। आप बताते है। और वो झल्ला कर कहता है कि दोपहर में करो। आप घर से बाहर होते है। आपको लगता है कि आज ही आप नौकरी पा जाएंगे। फिर दोपहर हो आती है। आप फोन करते है। फोन उठने पर आप को कहा जाता है कि यार देखो जगह नहीं है। एक महीने बाद फोन करना। अगला आपको हताश नहीं करता। उसे अपना नाम खराब नहीं करना। वो टीवी का युगपुरूष जो है।

अचानक एक दिन

एक दिन आप पाते है कि एक नम्बर से फोन आ रहा है। ये नम्बर जाना पहचाना है। आवाज आती है कि हमारे यहां इंटर्नशिप के लिए आपका सेलेक्शन किया गया है। आप बल्ले बल्ले। और उसी दिन से आप हो जाते है घर के लाडले। लेकिन इसी प्रक्रिया के दौरान हजारों युवक युवतियां या तो घर लौट जाते हैं या किसी और फील्ड से जुड़कर हल्के प्रयास करते है। पत्रकार की मौत हो जाती है।


आगे जारी रहेगा......


Soochak
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