Thursday, July 05, 2007

'सूरज' और टीवी समाचार का भविष्य

देश के सामने सूरज खड़ा है। या कहें कि एक बोरवेल के गड्ढे में गिरा है। उसे बचाने में मीडिया लगा है। वो बचा भी ले शायद। हरकतें बता रही है कि सूरज या तो बेहोश है या वो…। मीडिया के सामने वो एक लाइव रिपोर्ट है। पल पल की खबरें। देखा जाए तो ये देश किसी ओर से कोई सबक लेता नहीं दिखता। मीडिया भी सबक नहीं लेता। एक जान की कीमत से किसी को कोई गुरेज नहीं है। लेकिन ये हादसा यहीं बताता है कि इस भावनात्मक देश में कुछ घण्टों के लिए पूजा अर्चना के लिए तो वक्त है, लेकिन स्थानीय हादसों को रोकने की इच्छा उनमें रत्ती भर भी नहीं है। कल रात से ही देख रहा हूं। और आज शाम तक सूरज की जान बचाने के लिए सारा किया धरा हल्का पड़ रहा है। कैसे हम आप चाहते तो है पर बेबस है। एक क्रेन के उलटने से एक घायल भी हो गया। सीसीटीवी और तमाम फुटेज भी हमें यही बता रही है कि हम अब केवल टीवी के सामने देख ही सकते है कि क्या होगा आगे। ब्रेक लेने का सिलसिला इस बार टीवी नहीं छोड़ना चाहता है। प्रिस के मामले में टीवी ने मिसाल पेश की थी। इस बार को उसी के बिना पर चीख रहा है। देखिए ये भी कैसा विरोधाभास है। सोचकर देखिए क्या बाजार ऐसी खबरों को पसंद करता है। करता है। क्योंकि बाजार कोई मशीन नहीं। उसे तो बस टीवी पर ऐसा कंटेंट चाहिए, जिससे दर्शक चिपका रहे। और इसी के बीच में वो प्रचार को परोस कर खरीदार को माल तक ला सकें। देश और दुनिया की तमाम गंभीर खबरो में रूचि रखने वाले के लिए अब जनसंचार माध्यमों में जगह सिमट रही है। वो भी सूरज के निकलने के इंतजार में है। आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि सूरज और प्रिस तो होते रहेंगे, पर भावनात्मक खालीपन में दर्शक के लिए उनसे जुड़ना मुश्किल होगा। तो क्या होगा।

आज आप पाते है कि खबरों में जो रोमांच दिखाया जाता है वो असल जिंदगी में दिखता नहीं है। आज आप देखते है कि जिस तरह की पेशकश के जरिए एक आम सी खबर को ताना जाता है, वो सूचना महज एक लाइन की होती है। तो कैसे रख पाएगा टीवी अपने दर्शको को बाखबर।

आने वाला समय ये तय करेगा कि टीवी के लिए क्या सूचना जरूरी है या खबर की सनसनी। आप कहेंगे कि मुद्दा पुराना है। लेकिन गौर से देखिए। टीवी ने अपना सफर पहले खरी खरी राजनैतिक खबरों से शुरू किया। फिर इन्ही खबरों को मसाला और नमक लगाकर पेश किया गया। इसके साथ ही भारतीय टीवी चैनलों ने बरसो से पेंचीदी किस्म के सामाजिक मुद्दो को भुनाना शुरू किया। मसलन, पंचायत और तलाक। ये बात ज्यादा आगे न बढ़ पाई थी कि टीवी ने पकड़ लिया पारिवारिक संबंधों की दरार को। हर दरकता परिवार अब नंगा था समाज के सामने। साथ ही टीवी ने भारत की नब्ज पकड़कर सस्ती खबरों और अंधविश्वास को बेचा। और आज ये सिलसिला सेक्स, सस्पेंस और सेंसेशन पर टिका है। आपको हर खबर में ये फैक्टर दिखेंगे। चाहे वो लिखने का पक्ष हो या टीवी पर दिखने का।

तो क्या सूरज बचेगा। हां। सूरज को आज भले ही गड्ढे में देखा जा रहा हो, लेकिन जिस तरीके से,या कहें कि अनजाने में टीवी ने लोकतंत्र में एक जान की कीमत बता दिया है, वो ही उसे बदलने को मजबूर करेगा। एक औरत आज सुबह अपने आधे कपड़े उतार कर सड़को पर आ गई। उसे ससुराल वाले प्रताड़ित कर रहे थे। वो क्या करती। उसने सबसे सटीक उपाय ढूंढा। विरोध का। और इसका असर देखा गया।

आने वाले समय में आपके पास समय ही कम होगा। और ऐसे में खबर के देखने की आपकी पंसद भी निश्चित होगी। तो इसके लिए आपकी राय ली जानी जरूरी है। बस, यही से शुरू होगी एक ऐसी प्रक्रिया, जिससे आप देख पाएंगे खबर। तो क्या आप तैयार है अपना मत देने के लिए। हर दिन हर समाचार चैनल पर उनके फीडबैक के लिए फोन, पते और ईमेल दौड़ते रहते है। और अपनी सूचनात्मक जिंदगी में आपके पास इतना वक्त तो होगा ही कि आप दो चार शब्द कह सकें।
यकीनन सूरज को बचना चाहिए। लेकिन उसे आप बचा सकते है। जागकर। सवेरा हो गया है।

'सूचक'soochak@gmail.com

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1 comment:

Anonymous said...

आखिरकार सूरज बच गया...