जिस देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा अंग्रेजी के ख्वाब देखता है, करोड़ो खर्च करके अंग्रेज बनना चाहता है. वहां हैरी पॉटर जिंदा रहेगा या मरेगा कितना बड़ा सवाल है। आज सुबह ये रहस्य टूटा कि वो जिंदा रहेगा।
टीवी चैनलों के आम दर्शक के लिए मिथक बन चुका ये फिक्शनल किरदार आज चाचा चौधरी और हमारे बिल्लू, पिंकी, नागराज, ध्रुव और किवदंती सरीखी रचनाओं से बहुत आगे है। चंद्रकांता संतति या किसी अलाद्दीन तो इसके आगे पीछे नहीं है। ये हम नहीं हमारी टीवी कहती है। एक अनुमान के मुताबिक हर खबरिया चैनल ने बीते दिनों में रोजाना आधा घंटा हैरी पॉटर को दिया है। मानो पूरा देश हैरी के बचने की प्रार्थना कर रहा हो।
क्या इसे उदारीकरण कह सकते है। नहीं। क्योकि एकपक्षीय आयातित किरदार का मायाजाल है। जिसे हम आप अब समझ कर भी अंजान है।
टीवी चैनलों को बालक और युवा होते वर्ग को अपने से जोड़ने के लिए इस मायाजाल में अपनी मौजूदगी दिखाना जरूरी है। बाजार में आठ सौ की किताब वो खरीद सकता है, जो इस बाजार के लिए बना है।
अरबों के व्यापार वाली किताबें और अंग्रेजी। क्या हम दिन प्रतिदिन अपनी समझ से कटते जा रहे है। जिस देश में कुछ करोड़ लोग अंग्रेजी के साथ जीते है, वे ही इंडिया है। हरिया को भूल चुके भारत में हैरी ही बचेगा और बिकेगा।
हमें बहलाने और डराने वाले खबरिया चैनलों के सामने जो दिक्कतें है वो समझ के बाहर है। लेकिन क्या बहुप्रचारित और बहुप्रतीक्षित उत्पादों को अपनाने के लिए केवल जनउन्माद ही काफी होंगे।
हैरी को जिंदा किवदंती बनाने वाली जे के राउलिंग के सामने इतिहास में हमेशा मौजूद रखने की चुनौती थी। और आज के टू मिनट मीडिया ग्लेयर का दुनिया में ऐसा सम्मानजनक अंत के साथ किया जा सकता है। सो उन्होने इसे सात किताबों में सिमटा दिया। ताकि आगे कोई हैरी पॉटर पर सीक्वेल भी न लिख सके।
देश को खबरों से आगाह कराने वाले खबरिया चैनलो को ये देखना जरूरी है कि हरिया की मौत के बाद भी उसकी बरसी वो करते रहे। ये हैरी की दुनिया में फिट नहीं बैठता। उसका मायाजाल हमारी कथाओं से बड़ा नहीं है। लेकिन जिस बाजार में वो बिक रहा है,वो हमारी आकांक्षाओं से बहुत बड़ा है।
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2 comments:
अच्छी चर्चा. टीवीवाले तो करते ही यही सब हैं. उनके खबर की अपनी प्राथमिकता होती है.
सही है और सवाल यह है कि बाजार की यह मनमानी कब तक चलेगी?
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