Monday, January 21, 2008
कहां हैं राजनैतिक खबरें?
ये है वो सचाई, जिससे आप रोज रूबरू होते है। रोजाना आपको परोसा जा रहा है वो, जिससे न तो आपका जीवन बन सकता है, न आपकी जानकारी बढ़ सकती है। टीवी समाचार से राजनीतिक खबरें कम हो रही है। इसे सामान्य तौर पर समझना मुश्किल है। आम आदमी, जो रोजाना की दिक्कतों से जूझ रहा है, देखना चाहता है मनोरंजन वाली खबरें। ऐसा टीवी कंटेंट गढ़ने वाले मानते है। तो उन्होने पेश की हर वो पेशकश जिसमें दिमाग कम लगें, और समय ज्यादा। यानि जितना देर आप उनके चैनल पर बने रहेंगे, उतना मुनाफा वे कमाते रहेंगे। लेकिन इससे जो प्रभावित हो रहा है, वो है आपका सामाजिक और राजनैतिक जीवन और उससे जुड़े अधिकार।
यदि आपको पता ही न हो कि कौन सी नीतियां देश के नेता बना रहे है, तो कैसे आप उन्हे अपना सकते है। एक देश में जीने के लिए चाहिए होते है कुछ मूलभूत अधिकार और साथ में देशकाल की जागरूकता। मीडियायुग का पैनल पहले भी - शून्य में जीते हम आप - के जरिए ये चिंता जाहिर कर चुका है। लेकिन इसे लेकर किसी तरह की बहस या चर्चा न होना हमारे लिए चिंताजनक है।
जो दिख रहा है, उसे देखता रहना मजबूरी और जरूरत भले हो, लेकिन उसका एक आदत बन जाना खतरनाक है। आप हल्का, ऊलजुलूल, गैर जरूरी देखते हुए अपने दिमाग को पोला करने की ओर बढ़ रहे है। देश और समाज की किसी भी बड़ी पहल या बदलाव से आप बहुत नाता नहीं रख रहे, तो क्या आप मानकर चल रहे है कि टीवी की दुनिया में जो दिख रहा है, वहीं हकीकत है। टीवी का ये परिदृश्य आपको एक खतरनाक ट्रेजेडी एंड की ओर ले जा रहा है। जाग जाइए। और टीवी से जुड़े अपने अधिकारों की चिंता में आवाज लगाईए। देश के सभी बड़े समाचार चैनल एक धारा में बह रहे हैं। भले ही एक आइने से देखने पर आपको लगता हो कि इस फलां चैनल पर समाचार दिखाएं जाते है, लेकिन क्रिकेट की एक जीत सारी खबरों को दरकिनार कर देती है, और गंभीर और अगंभीर पत्रकारिता में अंतर खत्म हो जाता है। इसलिए दर्शक के तौर पर अपने अधिकार को समझिए। हर चैनल के लिए आप माई-बाप है। आपकी एक आवाज, लेख, ईमेल, फोन उन्हे पच्चीस बार सोचने पर मजबूर कर सकता है। मीडियायुग को आपसे केवल इतनी उम्मीद है। हम चाहते है कि आपके घरों में दिखने वाली खबर आपको एक ताकत और सूचना से लैस करे।
खैर। सीएमएस मीडियालैब के इस तीन साल के शोध के नतीजे आपकी आंखें खोलने को पर्याप्त होंगे। देश के कुछ प्रमुख मीडिया समूहों ने इन्हे अपने प्रकाशनों में जगह दी है।
3 'Cs' lord over politics on news channels
Crime, Bollywood steal show from politics on Hindi news channels
Trivia overtakes political news
Non-stop Trivia Eclipses Politics and Social Sector in Indian TV News
"Media Yug"
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2 comments:
मीडिया के बदलते चेहरे की हकीकत है यह रिपोर्ट
ज़रूरी रिपोर्ट। पिछले हफ्ते से ही इस पर लिखने की सोच रहा था। आधा लिख भी रखा था। चलिए अच्छा हुआ। आपने लिख दिया। मेरे सिर से बोझ हल्का हो गया।
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