Friday, September 28, 2007

एफएम रेडियो के नए वार

“नेपाली को इंडियन आईडल बना दिया, अब हमारा घर, महल्ला का चौकीदारी कौन करेगा जी”


ये शब्द रेड एफएम के एक रेडियो जॉकी नितिन के थे। जिसकी तपिश अब सिक्किम में देखी जा रही है। ये शब्द उस मानसिकता से निकले है, जो सालों से एक वीर कौम को देश की सेवा में निरंतर देखे जाने के बाद भी कायम है। बहादुर, नाम से ही हम सारे नेपालियों को समझते है। माने बहादुरी गुण नहीं, पेशा हो गया।

रेडियो पर दिनभर बकवास को पेश करने वाले जबान को पेशा बनाने वाले प्रस्तोताओं को अपने शब्दों का कीमत ये वाक्या ही समझा सकता है। देश भर में तीन सौ एफएम रेडियो चैनल है और दिन भर में अगर शब्दों की बरसात का अंदाजा लगाया जाए तो ये देश की जनसंख्या के आधे पर तो बैठेगी।

इस खास वाक्ये में क्योंकि इण्डियन आईडल का विजेता प्रशांत तमांग जुड़ा था, तो ये मुद्दा बन गया, लेकिन भाषाई तबको में नए खुले रेडियो चैनल क्या दिन भर में ऐसी तमाम गलतियां नहीं दोहराते होंगे। सवाल ये है कि क्या रेडियो को प्रचार के बीत गाना सुनाने का यंत्र मान लिया गया है। क्या रेडियो की रचनात्मकता और भूमिका केवल समय गुजारने के लिए पेश किए जाने वाले कार्यक्रमों में समा गई है।

आज रेडियो की बेहतरीन पेशकश करने वाले भी जानते है कि बाजार को साथ लेकर चलना कितना जरूरी है। और यहीं से शुरू हो जाता है सांस्कृतिक हल्के पन का एक तमाशा।

सितम्बर 24 की रात को नितिन ने विजेता के लिए जो शब्द कहे, वो केवल शब्द नहीं मानसिकता की सही तस्वीर दिखाता है। रेडियो जॉकी पूरी तैयारी के साथ ही स्टूडियो आते है। लेकिन काम का दबाव इन्हे अलग जुमले गढ़ने से रोकता है। सो निकलता वो है जो कहीं से काम का न हो या फिर किसी न किसी को कमजोर करता है।

रेडियो की नई भूमिका के लिए कोई मानदण्ड है कि नहीं ये पता करना आसान नहीं है। दिल्ली, लखनऊ, मुंबई या और महानगरों में कई नामों से जारी एफएम एक कपड़े में अलग अलग चेहरे से लगते है।

आने वाले दिनों में रेडियों की पहुंच छोटे शहरों से जुड़े गांवों तक होगी। और तब क्या किसान खेतों में गाना सुनकर खेती करेगा। या बेरोजगार अपना दिन इसी बकवास के बीच गुजार देगा।

बीते दिनों सरकार ने कहा कि उसे निजी रेडियो पर समाचार प्रस्तुत करने देने में कोई दिक्कत नहीं है, बशर्ते उस पर कोई नजर रखे। आज तो किसी की नजर है नहीं, आगे क्या होगा भगवान जाने।

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि क्या रोडियो को टाइमपास बनाने में इन रेडियो जॉकियो की सबसे बड़ी भूमिका है। और अगर है तो क्या लगता है कि रेडियो का भविष्य केवल दाम और नाम के बीच गाना बजाने की बची है।

http://sikkimnews.blogspot.com/2007/09/idol-ridiculed-protests-in-darjeeling.html
http://sikkimnews.blogspot.com/2007/09/24-hours-kalimpong-bandh-over-rj-nitin.html

Soochak
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