Tuesday, January 02, 2007

टीवी कैमरों से दूर गड्ढे

प्रिंस, कालू, अवधेश...। ये तीन किरदार उन गड्ढों के है, जो लापरवाही से जान लेने को खुले थे। तीनों बच्चें इनमें गिरे। जो बचा वो टीवी पर इतिहास रच गया। सारे मानक तोड़ गया। दो दिनों तक टीवी पर रहा। ये किस्सा ज्यादा पुराना नहीं है। प्रिंस हरियाणा के करनाल के एक गांव में गिरा। खबर को खबरिया चैनलोंने हाथो-हाथ लिया। और दो दिनों तक देश के सामने प्रिंस का रिएल्टी शो रहा। प्रिंस बचा भी। पर जिस रिएल्टी शो को टीवी ने लगातार पेश किया वो आगे होने वाली घटनाओं में नहीं दिखा। क्यों। क्यों एक बार टीवी कहता है कि अपना फर्ज निभा रहा है। और क्यों वो नहीं बचा पा रहा है कालू और अवधेश को। सवाल टीवी से इसलिए है क्योंकि वो ही दिखाता आया है। खैर जानिए। चैनलों को पता है। कि तमाशा एक बार पैदा किया जाता है। दर्शक को एक बार मजबूर किया जा सकता है। पल पल सस्पेंस एक बार दिखाया जा सकता है। वैसी ही घटना दुबारा हो तो दर्शक भले ही सोचें कि ये बच्चा भी टीवी को बचाना चाहिए, पर टीवी जानता है कि पके बर्तन को फिर नहीं आग में पकाया जाता। वो फूट जाता है। उसमें दाग पड़ जाते। पर लापरवाही पर उसका फोकस तो कम से कम होना ही चाहिए। क्यों गैंडे की खाल बन चुका प्रशासन और समाज उन्हे गंभीरता से नहीं ले रहा है। एक प्रिंस के बाद भी गड्ढे खुले है। बच्चे गिर रहे है। तमाशा हल्के में दिखाया जा रहा है। पर देखने वाला नहीं समझ पा रहा है कि क्यो बार बार गानों की तरह ये रिपीट हो रहे है। टीवी भी इसे समझाने में असफल रहा है। और आज भी गड्ढों के करीब कई प्रिंस, कालू और अवधेश खेल रहे है। टीवी कैमरों से दूर।

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