Sunday, January 21, 2007

टीवी की गंगा डुबकी...


पाप धुल लो। गंगा में डुबकी। टीवी लगा रहा है। रोजाना। सुबह सवेरे स्क्रीन पर एक एंकर, एक साधु, कल कल बहती गंगा। अर्ध नग्न भक्त। डुबकी की कतार। और कैमरे पर श्रद्धा की पूछ। आस्था का कुंभ है। अनास्थाईयों को लुभा रहा है टीवी। बताता है। केवल मेला नहीं है। जीवन है। बहाव है। कला है। संस्कृति है। और है भीड़। नियंत्रित। व्यवस्थित। औऱ टीवी से दूर। भोर अंधेरे गंगा की गोद में वे डुबकी लगाते है। टीवी पर संवाददाता बताता है। देखिए ये डुबकियां लगाई जा रही है। मानो नई बात हो देश के लिए। पर ये जरूरी है। जिस देश में केवल और केवल रोना रोने का चलन हो, वहां मात्र श्रद्धा और आस्था के बहाव में बहते करोड़ों लोग। एक डुबकी का तीर्थ बटोरने आएं हो, तो आश्चर्य विदेशियों को ही नहीं, हर टीवी देखने वाले को होता है। पावन गंगा। पर यहां भी विरोध दिखा। गंदी गंगा का। साधु बिफर गए। टीवी खुश हुआ। मुद्दा मिला। केवल साधुओं की भेष-भूषा और इंतजामों की सुना सुना कर वे ऊब रहे थे। चलो कमंडल का जल डिब्बे में आया। विजुअल बने। खूब दिखाया। साधु गुस्सा है। टीवी उछालता है। खैर मामला शाही स्नान आने तक दब जाता है। करोड़ों डुबकी लगाते है। हर हर गंगे। नागाओं में होड़ दिखती है। प्रशासन डरा लगता है। टीवी कैमरामैनों में होड़ है। कौन कितनी नग्नता दिखा लेता है। ये सात्विक नग्नता है। सभ्य समाज की समझ से परे। इसे शायद केवल विदेशी ही समझ सकते है। एक कोने में लाठी पर गठरी बांधे भोला भी विस्मित है। वो पटना से नहाने आया है। पर इस हो हल्ले को देखकर सहम जाता है। जैसा साउथ दिल्ली के सफदरजंग इन्क्लेव में बैठे कौशिक प्रधान सहमते है। कहते है -"गाड नोज हाउ वन कैन टेक अ डिप इन दिस राएट"- सच कहते है। नंगों का दंगल है ये। वे गंगे को पूजते है। अपने पराक्रम से भर देते है। उसके बहाव में उफान ला देते है। और छोड़ जाते है। मचलती लहरों के किनारे को। आम आदमी शांति से लंगोट डाल तीन से चार बार डुबकी लगाता है। मुख्यमंत्री अर्ध्य देते है। अखबार कहता है मौलाना मुलायम गंगा में पाप धुल रहे है। खैर। साधु पाप नहीं धुलता अपना पुण्य इस पतित पावना गंगा में छोड़ता है। जिससे आम आदमी जब डुबकी लगाए, तो मोहमाया में फंसे रहने के बावजूद तृप्ति मिले। साधु मल नहीं छोड़ता। वो कल कल गंगा में फल देता है। फल संन्यास की सालों पुरानी साधना का। आम आदमी उसे तीन चार डुबकियों में पा लेता है। और फिर इंतजार करता है। अगले कुंभ का। ये इंतजार टीवी को भी है। अरे भई सुबह की टीआरपी इतनी जो बढ़ गई है।

"सूचक"

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1 comment:

Divine India said...

सच का सच लेख का लेख बखुबी से निभाया है दोनों को आपने…