भारत में फसाना। लंदन में रूलाना। टीवी देखने वालों को देश के हिसाब से बहलाया जा रहा है। सेलेब्रिटी बिग ब्रदर और बिगबास में अंतर चैनलों और देश का है। मसाला भी एक सा है। बस देखने वाले की नब्ज पकड़ने में दोनों कामयाब रही। आर्यन वैद्य औऱ अनुपमा में प्यार हो गया। औऱ शिल्पा को शिकार होना पड़ा नस्लवाद का। पर दोनों ही मामलों में टीवी देखने वालों का आंकड़ा और चाव बढ़ गया। खैर। रिएल्टी शो का जमाना है। पर क्या वजहें है कि हर कोई शिल्पा शिल्पा कर रहा है। वजहें टीवी की है। दरअसल चैनल फोर ब्रिटेन का सरकारी चैनल है, जैसे कि बीबीसी। तो वजहें ये भी है कि सरकारी चैनल पर ही नस्लवाद के आरोप लगें, तो क्या सोचा जाएगा। क्या ऐसा अब भी सोचला है ब्रिटेन। भारत में कहानी अलग है। यहां इसी कार्यक्रम का प्रसारण एक निजी चैनल पर हो रहा है, और सीमित दायरे में इसकी पहुंच है। सो अफेयर चले या खींचतान, फर्क बहुत नहीं पड़ता। अब शिल्पा की कहानी में कई पेंच है। अपने ढलते कैरियर में रवानी लाने को उन्होने एक ऐसे कार्यक्रम में शरीर होना स्वीकारा, जो इससे पहले भी अपनी प्रस्तुति में विवादों में रहा है। ये कार्यक्रम भी ब्रिटेन में धार खो रहा था। सो शिल्पा का यहां आना। उनका घुलना मिलना। जलन पैदा करना। खाना बनाना। गाली सुनना। रोना। और रेटिंग का बढ़ना। खैर मुद्दा नस्लवाद का तो है ही, पर रिएल्टी के नाम पर चलने वाले ऐसे शो में आग्रह, पूर्वाग्रह और सोच न झलके तो कैसे होगी रिएल्टी। यहीं वजह है कि वो दिखी। भारत में प्यार में। और लंदन में तकरार में। पर बवाल की वजह है कि लोग अपने प्रति टीवी को जिम्मेदार मानते है। वे टीवी से जुड़े तो है पर आगे जाने में। पीछे घसीटने को नहीं। जिस रंगभेद, नस्लभेद की दुहाऊ टीवी दे रहा है। वो टीवी में नहीं समाज में है। यानि सोच में है। अब अगर सोलह हजार पांच सो शिकायतें आई है तो, संकेत बदलने का है। बदलिए। ये ऐतिहासिक है। एक लोकप्रिय कार्यक्रम के माध्यम से इतिहास से बुनी गई सोच को बदलने का मौका। मौका ये जताने का कि टीवी मनोरंजन भर न होकर परिवर्तन लाने का माध्यम है। इससे सीखना होगा। देश में टीवी ने कम मौकों पर ही अपनी ताकत को समझा है। उसे ऐसे मौकों से सीखना चाहिए कि जनभावनाओं को आगे लाने से वक्त बदलता है। सोच बदलती है। टीवी बदलता है।
'सूचक'
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2 comments:
बीग-ब्रदर ब बीग-बॉस एक ही कम्पनी के कार्यक्रम है.
बाकी सब तमाशा है, गाली-गलौच भारतीय भी करते है.
वक्त हो तो आज के हिंदुस्तान में जर्मन ग्रेयर का लिखा लेख पढ़ लीजिए... बिग ब्रदर के फलसफे पर ही है... आपको थोड़ा और समझ में आएगा ये खेल। शुक्रिया।
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