Tuesday, February 06, 2007

आगे जहां और भी है...

क्या है आगे। कैसा होगा भविष्य का संचार। एक नजर में आप चौंकने वाले प्रयोगों से दो-चार हो सकते है। मोबाइल, लैपटाप, इंटरनेट और इनका सम्मिश्रण कैसा होगा। ज्यादातर संचार के साधनों का प्रयोग करने वाले उसके सारे प्रयोगों से अनभिग्य ही रहते है। किसी भी संचार सेवा का मूल उद्देश्य पूरा होने के बाद उससे मिलने वाली सहूलियतों का शुल्क देना अभी भारत में शौकीनों की फेहरिस्त में ही आता है। जैसे मोबाइल पर इंटरनेट करना, एमएमएस ब्लूटूथ या इंफ्रारेड से भेजना, इंटरनेट से खरीदारी करना, या आनलाइन कोर्स करना, लैपटाप से अपने घरेलू काम करना आदि। ये तस्वीर कुछ आधुनिक समाज के बरक्स खड़ी होती है। जिसे अपनाने में माहौल का बड़ा हाथ होता है। मोबाइल कैमरे से फोटो खींचना भारतीय को समझ में आने लगा है। पर उसे डाउनलोड करना अभी भी तकनीकी या शौक का पहलू है। तो कैसा होगा ये सामूहिक विकास। कैसा होगा आपके हाथ में रहने वाले उपकरणों से सूचना फैलने का समाज। धुंधला ही सही। पर झलक दिखने लगी है। आपके घर में न मौजूद रेडियो को आपने अपने मोबाइल में पा लिया है। शहरों में एफएम बज रहा है। और एक नई संगीतमय आवाज, आज मनोरंजन और अल्प जरूरी सूचना देने भर में व्यस्त है, कुछ बदल रही है। जैसे सड़कें जाम है। ये गाना फला सन् में गाया गया। इस गीत से जुड़े ये किस्से मशहूर है। चलिए रेडियो अब तीन सौ से ज्यादा शहरों में धड़क रहा है। पर सूचना के पैमाने पर इसे स्वतंत्रता मिलनी बाकी है। ये एक जनसंचार तभी होगा, जब ये हर कहीं की आवाज को समा सकेगा। और हर कही आप जुड़ जाएंगे दुनिया से। सैटेलाइट रेडियो का आपके घरों में बजना दुनिया की दास्तान रखने में कारगर होगा। टीवी रूक रहा है। लाइव प्रोग्राम के बीच टीवी को रोक दीजिए। फिर चला लीजिए। क्या बताता है ये। यानि आप अपने आपको वक्त दे सकते है। सोचने का वक्त, समझने का वक्त। पर बड़ा बदलाव डीटीएच, डायरेक्ट टू होम और कैस, कंडिशनल एक्सेस सिस्टम है। यानि आपकी इच्छा का टीवी दर्शन। पर ये इच्छा कंटेंट का नहीं। चैनलों का है। मसलन, घर में अंग्रेजी या मलयालम चले या न चले। पर स्वतंत्रता देखने की मिलेगी। मांग पर फिल्म। बच्चों के लिए स्पेशल डेवेलप कंटेंट। यानि कम्प्यूटर से आपकी दूरी बढ़ सकती है। टीवी का ये बदलाव आपको दुनिया के बेहरतरीन चैनलों से जोड़ देगा। जो एक समाज के संचार विकास में खासा योगदान देंगे। टीवी पर इंटरनेट मिलना और गेम्स खेलने को अभी भारतीय दर्शक नहीं रूझान बना पाया है। सो बच्चों को खुले में खेलने देना ही बेहतर होगा। कार्टून पर आंशिक प्रतिबंध आप लगा सकते है। अब रही कम्प्यूटर के विकास की बात तो, ये दिन प्रतिदिन अपना स्वरूप छोटा करता जाएगा। कभी लैप तो कभी पॉम। इससे आपका जीवन दूभर होना तय है। कंपनी अगर साथ में कम्प्यूटर देती है तो सेवा लेगी चौबीस घंटे। इसे जीवन में गणित की घुसपैठ ही मानिए।

पर जो एक चीज आपको निहायत ही आलसी बनाएगी, वो भी तकनीक ही होगी। आप मोबाइल के एक मैसेज से शापिंग कर सकेंगे। घर बैठें सारे बिल जमा कर सकेंगे। टीवी पर कुछ भी देख सकेंगें। रेडियो से मनचाहा गाना गवा सकेंगे। लैपटाप से घर बैठे काम कर सकेंगे। पामटाप से मीटिंग में मौजूद रहेंगे। और सफर के दौरान वीडियों कांनफ्रेसिंग से कही भी मौजूद रह सकेंगे। तो क्या तैयार है इस बदलती दुनिया का हिस्सा होने के लिए...

आगे आने वाले लेखों में आपको बताएंगे कि टीवी क्या क्या हो जाएगा आपके दस्तरखान में....

"सूचक"
soochak@gmail.com

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