हिंदी में बजट । मानो आवाज देते कलाकार टीवी पर देश को अर्थशास्त्र समझाने आ गए हो। पत्रकारिता में अनुवाद की अहमियत है। खबर छुपी होती है हर अनुवाद में। पर अंग्रेजी में वित्तमंत्री के भाषण का अधकचरा,वाक्यों के व्याकरण बिना, न आगा न पीछा वाला हाल करते टीवी के अनुवादक बजट का कचट निकाल रहे थे। सभी प्रमुख समाचार चैनलों ने इस धर्म या नकल को अपनाना जरूरी समझा। दर्शक,जैसे मेरे मकान मालिक ने कहा कि केवल अर्थशास्त्र का ग्यान ही आपको बजट नहीं समझा सकता, बजट को बोलते वक्त समझने की जरूरत ही क्या है। शायद इसी वजह से पिछले कई सालों में जो वित्तमंत्री कहते थे, उसे बाद में ही समझा जाता रहा है। पर टीवी चैनलों को नया करना है। सो वे करते है। हिंदी अनुवाद या हिंदी में छपी आर्थिक समीक्छा से भी आप बजट को समझ जाए, ये कहना मुश्किल है। हां व्यापारी के लिए टैक्स और अपने लिए टैक्स का अंतर आप खूब जानते है। वैसे भी जो कमा रहा है,वो बचाना भी जानता है। पर आज की युवा पीढी को वित्तीय वर्ष के अंत में इन्कम टैक्स भरने की जद्दोजहद से जूझते देख समझ आ जाता है कि बजट समझना कितना मुश्किल है। वैसे टीवी ने जो सरलता दी है, वो दुरुहता से कम नहीं है। देखिए, टैक्स के आगे जो चीज आपको थोड़ी बहुत पल्ले पड़ती है वो राजस्व और राजकोषीय घाटा होता है। नौकरी की तैयारियों वाले छात्र इसे याद कर लेते है। फिर बारी आती है क्या सस्ता हुआ और क्या मंहगा। कल के अखबार में भी यही चींजे रंगबिरंगी तस्वीरों के साथ देखी जा सकती है। फिर आर्थिक विकास दर और विदेशी मुद्रा की बारी आता है। इसके आगे जानने में मेरे ख्याल से न आपको रूचि रहती है और न ही आम आदमी को। हाल की मंहगाई ने एक चीज और आपको याद करा दी है। मुद्रास्फीति यानि इन्फलेशन। इसके बढने पर मंहगाई कैसे बढती है,ये समझना मुश्किल है। पर लोग मंहगाई की मार झेल रहे है। चीजों की कमी के वक्त बाजार में सामानों का दाम बढ़ जाता है,और इससे सीधी जुड़ी होती है मुद्रास्फीति दर। तो मंहगांई को बढने से रोकने के लिए रेल बजट में भाड़ा नहीं बढ़ा तो आम बजट पर भी इसका असर देखा गया। असर वैसे सबसे ज्यादा दिखाया सेंसेक्स ने। पहले भी गिरा और बाद में भी। पर एक बात जो गौर करने लायक है वो ये कि बाजार को वित्तमंत्री क्यों नाराज करना चाहते है।उन्होने शेयरों पर मिलने वाले लाभांश पर लगने वाले कर को बढ़ा दिया है। क्या सेंसेक्स की कमाई पर वित्तमंत्री की नजर है। वे आम आदमी को रिझाने के लिए इनकम टैक्स नहीं बढ़ाते,और छूट भी देते है। हालांकि कस्टम,एक्साइज, एक्सपोर्ट ड्यूटी में वो कमी करते है। पर सेवा कर का दायरा बढ़ा देते है। और फ्रिंज बेनेफिट टैक्स का भी। खैर ज्यादा टैक्निकल न होते हुए कहा जा सकता है कि आम आदमी को कितना मिला और कितना छूटा, ये केवल आमदनी वाले की जेब ही जानती है।
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Wednesday, February 28, 2007
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1 comment:
"केवल अर्थशास्त्र का ग्यान ही आपको बजट नहीं समझा सकता, बजट को बोलते वक्त समझने की जरूरत ही क्या है।" बढिया लगा, अच्छा लेख!!
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