साइज क्या हो। क्या 'साइज' मायने रखता है। इन सवालों पर अगर टीवी अपनी छाया दिखाए तो बहस क्या होगी। मुझे उम्मीद है कि पहले के दो वाक्यों से आप संदर्भ समझ सकते है। संदर्भ ही नहीं वो सत्य भी जो कहने में मसालेदार कतई नहीं होता। दोपहर बारह बजे, एक अंग्रेजी समाचार चैनल, दिन गुरूवार। बहस। आईसीएमआर ने पिछले साल के आखिरी महीने में दो साल के शोध के बाद ये बताया कि बाजार में मौजूद कंडोम भारतीय लिंग के हिसाब से बडे है। बस खबर चल निकली। इसकी नतीजा सम्भोग के दौरान कई तरह की दिक्कतों के तौर पर देखा जा सकता है। पर टीवी ने इसे खामोशी से गुजर जाने दिया। आज यानि गुरूवार को दोपहर बारह बजे एक चैनल को क्या सूझी कि वो इस पर दो समझदारों के साथ "वन साइज डजेंट फिट फार एवरी वन" के नाम से बहस करे। आप यकीन नहीं मानेंगे। बहुतों ने ये देखा भी नहीं होगा। चैनल अभी अभी नम्बर वन एलीट बना है। तो सवाल ये है कि क्या ये बहसे अपनी मर्यादा जान ती है। क्या वे ये समझती है कि वे क्या परोस रही है। जिस कार्यक्रम की बात यहीं हो रही है, उसमें तो सभी हंस हंस कर ये बता रहे थे कि साइज से क्या, क्यो औऱ कैसे। निहायत ही दोमुंहापन भरा। वे हंस क्यो रहे थे। शर्म से। वे इन बातों को समझाने या समझने के लिए नहीं बल्कि आपकी हया को बताने के लिए ज्यादा दिखा रहे थे। एक पुरूष पत्रिका के संपादक औऱ एक चिकित्सक से जारी ये बहस केवल साइज औऱ कंडोम के संबंधों को बताने वाली रहती तो ठीक था, पर बार बार साइज पर हंसने वाले ये लोग अपनी सामाजिक उलझनों को जता जा रहे थे। वे वैग्यानिक परिभाषाओं या चिकित्सा पहलू से भी बात नहीं कह सकते थे। टीवी जो है। वे कठिनता से बात नहीं समझाता। सो बात आई गई हो गई। पर जो सवाल छूट गया उसका क्या। क्या खुलेपन के नाम पर जो माहौल हम जी रहे है, उस पर बात करने में हम अब भी हिचकते है। जो हम सोचते है, उसे खुलकर कह पाना अभी भी मुश्किल है। या हम अभी सचमुच बदले नहीं है। या हम बदलना नहीं चाहते। हम साइज के चक्कर में जीना पसंद करते है। टीवी ने जो बदलाव लाए है वे कितने हल्के है कि हम मोटी चमड़े वाले उन्हे ओढ़ लते है, जीते है, सोचते है, पर कहते नहीं। कहेंगे तो विरोधाभास दिखेगा। सच दिखेगा। और सवाल खड़ा हो जाएगा। मर्यादा टीवी ने खो दी है। पर समाज नहीं खोना चाहता। सो गाहे बगाहे हंस हंस कर वो दिखाता है कि हम नहीं बदले हैं। और शायद न बदलेंगे।
सूचक
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2 comments:
"टीवी जो है। वे कठिनता से बात नहीं समझाता।" कैसे समझाएगा जी? विज्ञापन दिखाना जरूरी है या आपको बात समझाना।
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