मीडियायुग को इस बात की खुशी है कि उसने दिल्ली में मीडिया के जातिगत समीकरणों पर हुए सर्वे को छापा। ऐसा करने वाला ये अकेला वेबपेज बना। सर्वे करने वाले तीनों सर्वेकर्ताओं ने ये पहल निजी संस्थानों में रिजर्वेशन की आग फैलने और आने वाले मीडिया रिपोर्टें के बीच किया। दरअसल कहा जा रहा है कि मीडिया में अगड़े हावी है, और खबरों पर उनका असर दिख रहा है। रिजर्वेशन पर मीडिया के रूख को लेकर भी ये आरोप लगे। घर की चहारदीवारी में झांकने में झिझके मीडिया जगत ने इस सर्वे को तूल नहीं दिया। जाहिर है ये दर्शाता है कि झिझक है, ये कुबूलने में कि कमियां हममें भी हो सकती है। हाल ही में एक अखबार में संपादक ने लिखा कि सवाल जात की नहीं सवाल काम की काबिलियत का है। पर एक सर्वेकर्ता को लिखना ही पड़ा कि कहानी केवल इतनी ही नहीं जितनी समझी जा रही है.....
http://www.hindustandainik.com/news/2031_1740511,00830001.htm
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Tuesday, July 11, 2006
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