जो हुआ उसे बदला नहीं जा सकता, उसकी याद रख भर लेने से भी कुछ नहीं बदलता। जिंदगी चलती रहती है...मुंबई में जो हुआ वो निंदनीय है। मीडिया ने एक दिन में मुंबई की जिजीविषा के दावे किए। एक करोड़ सत्तर लाख की आबादी वाला ये शहर दिहाड़ी मजदूरों की बड़ी आबादी से चलता दौड़ता है। इन चेहराहीन लोगों को हर दिन कमाना है खाना है और सो जाना है। सवेरा होते लोकल पकड़नी है...ये सिलसिला है जो मुंबई को जीवंत बनाए हुए है। मीडिया से जुड़े एक साथी एक दिन बाद का नजारा कैद किया है....देखिए एक शहर जो लगातार दौड़ रहा है पटरियों पर...
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Thursday, July 13, 2006
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1 comment:
pleaSE DONT get philospohical hit where you can. dont cry.
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