Wednesday, July 12, 2006

सहभागी पत्रकारिता का युग...

नया चलन है बाजार का 'सिटीजन जर्नलिज्म' (http://en.wikipedia.org/wiki/Citizen_journalism)। इसे हिंदी नाम का अभी इंतजार है। सो 'सहभागी पत्रकारिता' बुरा नहीं है। दरअसल सिटीजन जर्नलिज्म को 'पार्टिसिपेटरी जर्नलिज्म' भी कहा जाता है। विकसित देशों के इस चलन की शुरूआत 1988 में अमेरिका के राष्टपति चुनावों से हुई। तमाम संस्थाओं ने इनके मानक भी तय किए है। पर क्या ये बहस का मुद्दा नहीं है कि जिस सहभागी जर्नलिज्म के नाम पर भारतीय टीवी न्यूज चैनल आजकल हायतौबा मचाए हुए है, उसके भारतीय मानक क्या हो? ध्यान होगा आपको जब अमेरिका के ट्विन टावर को ध्वस्त किया गया था, तब क्या आपने किन्ही भी वीडियों टेप में किसी मरने वाले का शरीर देखा हो....और पीछे जाइए डायना और डोडी अलफयाद की मार्ग दुर्घटना में मौत के वक्त क्या आपको दिखे थे, उनकी हताहत बॉडी। जी हां इसे कहते है इथिकल जर्नलिज्म। अंतर्राष्टीय पत्रकारिता में मानक तय है। पर भारतीय ठेलमठेल पर गौर करें। हर चैनल किसी भी मानवीय या नैचुरल आपदा या घटना के वक्त गुहार लगाने लगता है, कि हमें अपने पास मौजूद एक्सल्यूजिव विजुअल या फोटो भेंजे। अब सवाल ये है कि जनता जो भी भेड दें वो आप चला देंगे। वो आप दिखा देंगे। चाहे बार बार कहना पड़े कि ये विजुअल आपका दिल दहला सकते है, हम दर्शकों से माफी चाहते है, ये दृश्य आपको विचलित कर सकते है। यानि जरूरत है नजर डालने की, कि क्या हो पैमाना सहभागी पत्रकारिता की। हम आपको इसके लिए कई लेखों की एक श्रंख्ला पेश करते है। ध्यान रखिए भारत में आने वाला कल नेट जर्नलिज्म और सिटीजन जर्नलिज्म का है। विश्वसनीयता का खतरा तथाकथित मुख्यधारा पत्रकारिता को है। इसलिए बाखबर रहिए जब तक आप खुद सहभागी पत्रकार न बना जाए।

हम इस बहस को तेज करना चाहते है...यानि आपकी सहभागिता अभी हमारे लिए महत्वपूर्ण है....

http://en.wikipedia.org/wiki/Citizen_journalism

http://english.ohmynews.com/english/eng_section_special.asp?article_class=19

http://www.poynter.org/content/content_view.asp?id=83126

http://www.poynter.org/content/content_view.asp?id=91391

http://www.poynter.org/column.asp?id=31&aid=79670

http://www.cyberjournalist.net/news/002226.php

http://www.aim.org/media_monitor/3760_0_2_0_C/

http://www.journalism.co.uk/news/story1458.shtml

Send your write-ups on any media on "mediayug@gmail.com"

2 comments:

ASA said...

This is Kaliyug and this era belongs to yellow journalism.

Ramashankar said...

"ये विजुअल आपका दिल दहला सकते है, हम दर्शकों से माफी चाहते है, ये दृश्य आपको विचलित कर सकते है। ...."
यह पत्रकारिता का वह दौर है जहां किसी के पास कुछ कहने व दिखाने को कुछ बचा नहीं है. अब अपने अस्तित्व का संकट ... उपर से दर्शकों को बांधना ... बस इन्ही पाटों के बीच पत्रकारिता की परिभाषा बदल कर उसे सिटीजन जर्नलिस्ट के खाके में गढ़ दिया, लेकिन खुद पत्रकारिता के पैमाने भूलते गए. अब दर्शक यह नहीं जानता कि खबर कहां से आई किसने भेजी वह तो बस कहता है फलां चैनल में यह खबर है. हमने भी खबरों की विश्वसनीयता उस व्यक्ति पर छोड़ दी जो हमारे प्रति कतई जवाबदेह नहीं है... अंत में छवि किसकी खराब होती है... मुख्यधारा के पत्रकार की.